अप्रैल माह के कृषि कार्य | Agriculture work for the month of April
अप्रैल में बोई जाने वाली सब्जियां | अप्रैल महीने में कौन सी खेती करें | अप्रैल में बोई जाने वाली फसल | अप्रैल में बोई जाने वाली फसलें | अप्रैल माह के कृषि एवं बागवानी कार्य | April mah ke krishi karya | Agriculture work for the month of April |
अप्रैल माह के कृषि कार्य | Agriculture work for the month of April:
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मिट्टी परीक्षण (Soil Testing):
- अप्रैल माह में खेत खाली होने पर मिट्टी के नमूने ले लें।
- 3 वर्षों में एक बार अपने खेत का मिट्टी परीक्षण अवश्य करवाएं ताकि, मिट्टी में उपलब्ध पोषक तत्वों (नत्रजन, फास्फोरस, पोटाशियम, सल्फर, जिक, लोहा, तांबा, मैंगनीज व अन्य) की मात्रा तथा फसलों में कौन सी खाद कब व कितनी मात्रा में डालनी है, का पता चल सके।
- भूमि में पोषक तत्वों की कमी जानने के लिए मृदा परीक्षण करवा ले।
- एक खेत से प्राप्त मिट्टी के नमूने को आपस में मिलाकर नियम अनुसार उसमें से लगभग 500 ग्राम भार एक थैले में भरकर पूरे विवरण के साथ मृदा परीक्षण प्रयोगशाला में भेजें।
अन्न भण्डरण ( खाद्य सुरक्षा):
- खरीफ की फसलों के दानों को कीड़े बहुत नुकसान पहुचातें हैं, इनसे बचाव के लिए अन्न को धूप में अच्छी तरह सुखा लें तथा साफ कर लें।
- गोदान में सुराख व दरारें अच्छी तरह बंद कर लें। नई बोरियां प्रयोग में लाएं।
भुमि का समतलीकरण:
- भूमि समतलीकरण कर ले जिससे सिंचाई के समय पानी पूरे खेत में एक समान पहले फैले।
फसलोत्पादन:
गेहूँ:
- इस माह में बोई गई गेहूं की फसल पक कर तैयार हो जाती है तथा उसकी समय से कटाई- मड़ाई प्रबंधन कर लेनी चाहिए अन्यथा कभी-कभी वर्षा या ओला गिरने से भारी नुकसान हो सकता है।
- फसल काटने से पहले खरपतवार या गेहूँ की अन्य प्रजातियों की बालियों को निकाल देना चाहिए, जिससे मड़ाई के समय इनके बीज गेहूँ के बीज में न मिलने पायें।
जौ/चना/मटर/सरसों/मसूर:
- जौ, चना, मटर, सरसों व मसूर आदि कटाई व मड़ाई पुरी कर लेनी चाहिए।
सूरजमुखी:
- दूसरी सिंचाई के साथ मिट्टी चढ़ाने से पौधों के गिरने का डर रहता है।
- कमजोर या रोगी पौधों को निकाल कर, पौधों के आपस की दूरी 30 सेंटीमीटर कर दें|
- सूरजमुखी में हरे फुदके पत्तियों से रस चूसकर हानि पहुँचाते हैं। इनके नियंत्रण के लिए प्रति हेक्टेयर फास्फेमिडान 250 मिलीलीटर का छिड़काव करें।
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उर्द/मूँग:
- उर्द की बोआई का समय अब निकल गया है। परन्तु मूँग की बोआई 10 अप्रैल तक की जा सकती है।
- उर्द/मूँग की फसल में पत्ती खाने वाले कीटों की रोकथाम करें।
शरदकालीन/बसन्तकालीन गन्ना:
- आवश्यकतानुसार सिंचाई करते रहें।
- बहुत से किसान गेहूं की फसल काटने के बाद गन्ने की बुवाई करते हैं अतः उन खेतों में पलेवा करने के बाद बुवाई करें।
- जिस खेत से बुवाई के लिए गन्ना लेना है उसमें बुवाई से 5 से 7 दिन पूर्व सिंचाई कर दें।
- गन्ने की दो कतारों के मध्य इस समय मूँग की एक कतार बोई जा सकती है।
चारे की फसल:
- जिस खेत से बरसीम का बीज लेना है उसमें मार्च के प्रथम सप्ताह के बाद कटाई बंद कर बीज के लिए छोड़ दें।
- बीज वाले बरसीम के खेत में हल्की सिंचाई करें अन्यथा वानस्पतिक वृद्धि अधिक होगी तथा बीज उत्पादन घटेगा।
- गर्मी में चारे के लिए मक्का, लोबिया व कई कटान वाली चरी की बुवाई अभी भी की जा सकती है।
- मक्का व लोबिया मिलाकर बोलने से अच्छी गुणवत्ता का चारा प्राप्त होता है।
सब्जियों की खेती:
- नर्सरी तैयार करने के लिए लो टनेल पाली हाउस (एग्रोनेट युक्त) का प्रयोग करने से अच्छी गुणवत्ता का पौध तैयार होगा।
- बैगन में तनाछेदक कीट से बचाव के लिए नीमगिरी 4 प्रतिशत का छिड़काव 10 दिन के अन्तराल पर करने से अच्छा परिणाम मिलता है।
- भिण्डी/लोबिया की फसल में पत्ती खाने वाले कीट से बचाने के लिए क्यूनालफास 20% 1 लीटर प्रति हेक्टेयर से 800 लीटर पानी में घोलकर छिड़काव करें।
- लहसुन व प्याज की खुदाई करें। खुदाई के 10-12 दिन पूर्व सिंचाई बन्द कर दें।
- वर्षाकालीन बैंगन की फसल के लिए नर्सरी में बीज की बुवाई इस माह में भी कर सकते हैं।
- कद्दू वर्गीय फसलों में 4 से 5 दिन के अंतराल पर सिंचाई करें पौधों के कमजोर होने पर आवश्यकतानुसार यूरिया का टॉप ड्रेसिंग कर दें। ध्यान रखें कि यूरिया, पत्तियों पर ना गिरे अन्यथा फसल जल जाएगी।
- हल्दी अदरक व सूरन की बुवाई के बाद खेत को सूखी पुआल से ढक दें इससे खेत में खरपतवार का जमाव नहीं होता, नमी संरक्षित रहने से फसल का जमाव भी अच्छा होता है तथा साथ ही इनके सड़न से खेत में जीवांश पदार्थ का मात्रा भी बढ़ती है।
- लाल भृंग कीट की रोकथाम के लिए सुबह ओस पड़ने के समय राख का बुरकाव करने से कीट पौधों पर नहीं बैठते हैं।
- सूरन की बोआई पूरी माह तथा अदरक व हल्दी की बोआई माह के दूसरे पखवाड़े से शुरू की जा सकती है।
- प्रति हेक्टेयर अदरक की बोआई के लिए लगभग 18 कुन्टल, हल्दी के लिए 15-20 कुन्टल व सूरन के लिए 75 कुन्टल बीज की आवश्यकता होती है।
- बोआई से पूर्व हल्दी व अदरक के बीज को 0.3 प्रतिशत कापर आक्सीक्लोराइड के घोल में उपचारित कर लें।
बागवानी:
- आम के गुम्मा रोग (मालफारमेशन) से ग्रस्त पुष्प मंजरियों को काट कर जला या गहरे गढ्ढे में दबा दें।
- आम के फलों को गिरने से बचाने के लिए एल्फा नेफ्थलीन एसिटिक एसिड 4.5 एस.एल. के 20 मिली को प्रति लीटर पानी में घोलकर छिड़काव करें।
- लीची के बागों की आवश्यकतानुसार सिंचाई करते रहें। लीची में फ्रूट बोरर की रोकथाम हेतु डाईक्लोरोवास आधा मिलीलीटर प्रति लीटर पानी (0.05 प्रतिशत) या 2 मिलीलीटर प्रति 5 लीटर पानी (0.04 प्रतिशत) में घोल बनाकर छिड़काव करें।
- आम, अमरूद, नींबू, अंगूर, बेर तथा पपीता की सिंचाई करें।
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पुष्प व सुगन्ध पौधे:
- गुलाब में आवश्यकतानुसार सिंचाई, गुड़ाई व तराई तथा बेकार के क टहानियों तोड़ दे।
- गर्मी के फूलों जैसे जीनिया, पोर्चुलाका व कोचिया के पौधों की सिंचाई एवं निराई-गुड़ाई कर दें।
- मेंथा में 10-12 दिन के अन्तर पर सिंचाई तथा तेल निकालने हेतु प्रथम कटाई करें।
मुर्गीपालन:
- जो मुर्गियाँ कम अण्डे दे रही हों, उनकी छटनी कर दें।
- मुर्गियों में डिवर्मिंग (पेट के कीड़ों के लिए दवा) करें।
- बदलते मौसम में मुर्गियों को प्रकाश, स्वच्छ जल तथा सन्तुलित आहार की व्यवस्था करवायें।
- आर.डी. तथा फाउल पाक्स का टीकाकरण ससमय करायें।
पशुपालन/दुग्ध विकास:
- गाय तथा भैंस की बच्चे को क्रीम नाशक दवा पिलाएं।
- पशुओं में खुरपका-मुँहपका रोग से बचाव के लिए टीका लगवायें।
- पशुओं के लिए बदलते हुए मौसम के अनुसार सुपाच्य तथा पौष्टिक चारा की व्यवस्था करें।
पशुओं के आहार तैयार करने से पहले ध्यान रखने योग्य कुछ मुख्य बातें:
- आहार में सभी पोषक तत्व उचित मात्रा में होने चाहिए।
- आहार होने के साथ-साथ पशु को संतुष्टि प्रदान करने वाला भी होना चाहिए।
- थोड़ा भारीपन (स्थूल) भी होना चाहिए।
- आहार संतुलित हो लेकिन विषैला नहीं होना चाहिए।
- सस्ता, ताजा तथा पर्याप्त मात्रा में प्रोटीन युक्त होना चाहिए।
- उचित समय अंतराल पर दिन में केवल दो बार आहार देना चाहिए ताकि पाचन क्रिया ठीक रहे।
- हरे चारे को साल भर देने का प्रयास करना चाहिए।
- पुआल को भिगोंकर ही देना चाहिए, इसके अलावा दाना को हमेशा पानी में फुलाकर ही खिलाना चाहिए जिससे उसकी पौष्टिकता बढ़ जाती है।
- बछड़े,गाय, गर्भवती गाय,भार वहन करने वाले बैल, सांड,सुखी गर्भवती गाय तथा बढ़ने वाले पशुओं को दिए जाने वाले आहार अलग-अलग प्रकार के होते हैं ।
पशु को आहार देने के कुछ मूल नियम:
- पशु का आहार दिन में दो बार 8-10 घंटे के अंतराल पर चारा पानी देना चाहिए।
- इससे पाचन क्रिया ठीक रहती है एवं बीच में जुगाली करने का समय भी मिल जाता है।
- पशु का आहार सस्ता, साफ़, स्वादिष्ट एवं पाचक हो | चारे में 1/3 भाग हरा चारा एवं 2/3 भाग सूखा चारा होना चाहिए।
- पशु को जो आहार दिया जाए उसमें विभिन्न प्रकार के चारे-दाने मिले हों।
- चारे में सूखा एवं सख्त डंठल नहीं हो बल्कि ये भली भांति काटा हुआ एवं मुलायम होना चाहिए। इसी प्रकार जौ,चना, मटर, मक्का इत्यादि दली हुई हो तथा इसे पक्का कर या भिंगो कर एवं फुला कर देना चाहिए।
- दाने को अचानक नहीं बदलना चाहिए बल्कि इसे धीरे-धीरे एवं थोड़ा-थोड़ा कर बदलना चाहिए।
- पशु को उसकी आवश्यकतानुसार ही आहार देना चाहिए | कम या ज्यादा नहीं।
- नांद एकदम साफ होनी चाहिए, नया चारा डालने से पूर्व पहले का जूठन साफ़ कर लेना चाहिए।
- गायों को 2-2.5 किलोग्राम शुष्क पदार्थ एवं भैंसों को 3.0 किलोग्राम प्रति 100 किलोग्राम वजन भार के हिसाब से देना चाहिए।