अगस्त माह के कृषि कार्य | Agriculture work for the month of August

अगस्त में बोई जाने वाली सब्जियां | अगस्त महीने में कौन सी खेती करें | अगस्त में बोई जाने वाली फसल | अगस्त में बोई जाने वाली फसलें | अगस्त माह के कृषि एवं बागवानी कार्य | August mah ke krishi karya | Agriculture work for the month of August |

अगस्त माह के कृषि कार्यअगस्त माह के कृषि कार्य | Agriculture work for the month of August:

इस माह में कृषि मुख्य तथ्या:

  1. अगस्त माह, खरीफ की फसलों के लिए सबसे महत्वपूर्ण महीनों है। 
  2. खरीफ फसलों में कई मुख्य सब्जियों की खेती होती है।
  3. सब्ज़ियों की खेती करने वाले किसानों को जुलाई-अगस्त माह में खेती की तैयारी कर लेनी चाहिये।
  4. बारिश की मात्रा भले ही पहले जितनी हो, पहले बारिश रह-रहकर पूरे खरीफ मौसम में चलती रहती थी आरै फसल को अपने पूरे जीवनकाल में सिंचाई रहती है।
  5. इस माह में अधिक या अचानक अधिक वर्षा होने की संभावना होती है, नुकसान से बचने के लिए फसलों में सिंचाई के लिए बनाई नालियां को जल-निकास की व्यवस्था कर लेनी चाहिए है। खेत में पानी जमा होने से फसलों का भारी नुकसान हो सकता है ।
  6. अगस्त माह में नत्रजन खाद देते समय वर्षा का विशेष ध्यान रखें । जमीन में काफी नमी होनी चाहिए ताकि यूरिया पूरी तरह घुल जाय। परन्तु अधिक नमी या तुरंत बरसात होने की स्थिति में यूरिया तबतक न डालें जबतक जमीन में नमी उचित मात्रा में नहीं रह जाती अन्यथा बहुत सी नत्रजन पानी के साथ बह जायेगी ।

फसलोत्पादन:

धान:

  1. धान की देर से पकने वाली प्रजातियों की रोपाई अब ना करें। 
  2. शीघ्र पकने वाली प्रजातियों कि रोपाई के लिए 40 दिन पुरानी पौध का प्रयोग करें तथा 15×10 सेंमी की दूरी पर, प्रति स्थान 3-4 पौध लगायें।
  3. धान की रोपाई के 25-30 दिन बाद, अधिक उपज वाली प्रजातियों में प्रति हेक्टेयर 30 किग्रा नाइट्रोजन (65 किग्रा यूरिया) तथा सुगन्धित प्रजातियों में प्रति हेक्टेयर 15 किग्रा नाइट्रोजन (33 किग्रा यूरिया) की टाप ड्रेसिंग कर दें।
  4. नाइट्रोजन की इतनी ही मात्रा की दूसरी व अन्तिम टाप ड्रेसिंग रोपाई के 50-55 दिन बाद करनी चाहिए।
  5. ध्यान रहे टॉप ड्रेसिंग की मात्रा की दूसरी और अंतिम टाप ड्रेसिंग रोपाई के 50 से 55 दिन बाद करनी चाहिए। 
  6. ध्यान रहे टॉप ड्रेसिंग से पूर्व खरपतवार निकालने तथा टॉप ड्रेसिंग करते समय खेत में 2-3 सेंटीमीटर से अधिक पानी ना हो। 
  7. खैरा रोग की रोकथाम के लिए प्रति हेक्टेयर 5 किग्रा. जिंक सल्फेट तथा 2.5 किग्रा. चूना या 20 किग्रा. यूरिया को 1000 ली. पानी में घोलकर प्रति हेक्टेयर छिड़काव करें।
  8. धान की फसल से अधिक उपज के लिए खेत में हमेशा पानी भरा रहना आवश्यक नहीं है वर्षा ना होने की स्थिति में 6 से 7 दिन के अंतराल पर सिंचाई करें।
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ज्वार:

  1. संकर/उन्नत प्रजातियों में विरलीकरण (थिनिंग) क्रिया के बाद प्रति हेक्टेयर 50-60 किग्रा नाइट्रोजन (108-130 किग्रा यूरिया) की दूसरी व अन्तिम टाप ड्रेसिंग बोआई के 30-35 दिन बाद करें।

मक्का:

  1. मक्का में नाइट्रोजन प्रति हेक्टेयर 40 किग्रा (87 किग्रा यूरिया) की दूसरी व अन्तिम टाप ड्रेसिंग बोआई के 45-50 दिन बाद, नरमंजरी निकलते समय करनी चाहिए। ध्यान रहे कि खेत में उर्वरक प्रयोग करते समय पर्याप्त नमी हो।
  2. फसल में नरमंजरी व बाली बनते समय खेत नमी की कमी नहीं होनी चाहिए अन्यथा उपज में 50% तक की कमी हो सकती है। 

बाजरा:

  1. बाजरा की बोआई माह के मध्य तक अवश्य पूरी कर लें।

मूँग/उर्द:

  1. खेत में निराई-गुड़ाई करके खरपतवार निकाल दें।
  2. पीला मोजैक रोग की रोकथाम के लिए डाईमेथोएट 30 ई.सी. अथवा मिथाइल-ओ-डिमेटान 25 ई.सी. की एक लीटर मात्रा को 700-800 लीटर पानी में घोल कर आवश्यकतानुसार 10-15 दिनों के अन्तराल पर छिड़काव करें।

सोयाबीन:

  1. फसल की बोआई के 20-25 दिन बाद निराई कर खरपतवार निकाल दें। आवश्यकतानुसार दूसरी निराई भी बोआई के 40-45 दिन बाद करें।
  2. सोयाबीन पर पीला मोजैक बीमारी का विशेष प्रभाव पड़ता है। अतः इसकी रोकथाम के लिए डाईमेथोएट 30 ई.सी. की एक लीटर मात्रा 700-800 लीटर पानी में घोलकर प्रति हेक्टेयर की दर से छिड़काव करें।

मूँगफली:

  1. मूँगफली में दूसरी निराई-गुड़ाई बोआई के 35-40 दिन बाद करके साथ ही मिट्टी भी चढ़ा दें।

सूरजमुखी:

  1. सूरजमुखी में बोआई के 15-20 दिन बाद फालतू पौधों को निकालकर लाइन में पौधों की दूरी 20 सेंमी कर लेनी चाहिए।
  2. फसल में बोआई के 40-45 दिन बाद दूसरी निराई-गुड़ाई के साथ ही 15-20 सेंमी मिट्टी चढ़ा दें।
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गन्ना:

  1. गन्ना को बाँधने का कार्य इस माह में अवश्य कर लें। इस समय गन्ने की लम्बाई लगभग 2 मीटर हो जाती है। ध्यान रहे कि बाँधते समय हरी पत्तियाँ एक समूह में न बँधें।

सब्जियों की खेती:

  1. इस महीने किचन गार्डन (Kitchen Gardening) की बोआई की जा सकती है।
  2. शिमला मिर्च, टमाटर व गोभी की मध्यवर्गीय किस्मों की बोआई पौधशाला में पूरे माह कर सकते हैं, जबकि पत्तागोभी की नर्सरी डालने का उचित समय माह के अन्तिम सप्ताह से शुरू होता है।
  3. बैंगन, मिर्च, अगेती फूलगोभी व खरीफ प्याज की रोपाई करें।
  4. बैंगन, मिर्च, भिण्डी की फसलों में निराई-गुड़ाई व जल निकास तथ फसल-सुरक्षा की व्यवस्था करें।
  5. कद्दूवर्गीय सब्जियों में मचान बनाकर उस पर बेल चढ़ाने से उपज में वृद्धि होगी तथा स्वस्थ फल बनेंगे।
  6. परवल लगाने के लिए मघा नक्षत्र (15 अगस्त के आसपास का समय) सर्वोत्तम होता है।

बागवानी:

  1. आम, अमरूद, बेर, आँवला, नींबू, आदि के नये बाग लगाने का समय अभी चल रहा है। इनकी पौध किसी विश्वसनीय पौधशाला से ही प्राप्त करें।

पुष्प व सुगन्ध पौधे:

  1. गुलाब के स्टाक की क्यारियों में बदलाई करें। आवश्यकतानुसार निराई-गुड़ाई व रेड स्केल कीट का नियंत्रण करें।
  2. रजनीगन्धा में पोषक तत्वों के मिश्रण का 15 दिन के अन्तराल पर छिड़काव करें तथा स्पाइक की कटाई करें।

मुर्गीपालन:

  1. अंडे के लिए नये चूजें द्वारा मुर्गियों पालने के लिए यह समय उपयुक्त नहीं है परंतु ब्रायलर मुर्गियों के लिए यह समय उपयुक्त है। 
  2. मुर्गी के पेट में कीड़ों को मारने (डिवर्मिंग) की दवा दें।
  3. मुर्गीखाने को सूखा रखें तथा बिछावन को पलटते रहें।
  4. मुर्गीखाने में अधिक नमी हो तो पंखा चलायें।
  5. पानी का क्लोरीनेशन अवश्य करें।

पशुपालन/दुग्ध विकास:

  1. नये आये पशुओं तथा अवशेष पशुओं में गलाघोंटू का टीका लगवायें।
  2. लीवर फ्लूक के लिए दवा पिलायें।
  3. नवजात बच्चों को खीस (कोलेस्ट्रम) अवश्य दें।
  4. गर्भित पशु की उचित देखभाल करें तथा पोष्टिक चारा दें।
  5. पशुशाला को साफ-सुथरा व सूखा रखें, पानी न जमा होने दें।
  6. मच्छरों से बचाव के लिए पशुशाला के पास नीम की पत्ती का धुँआ करें।
  7. वाह्य परजीवी के लिए दवा लगायें।

 

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