दिसंबर माह के कृषि कार्य | Agriculture work for the month of December

दिसंबर में बोई जाने वाली सब्जियां | दिसंबर महीने में कौन सी खेती करें | दिसंबर में बोई जाने वाली फसल | दिसंबर में बोई जाने वाली फसलें | दिसंबर माह के कृषि एवं बागवानी कार्य | December mah ke krishi karya | Agriculture work for the month of December |दिसंबर माह के कृषि कार्य

दिसंबर माह के कृषि कार्य | Agriculture work for the month of December:

फसलोत्पादन:

गेहूँ:

  1. गेहूँ की अवशेष बोआई शीघ्र पूरी कर लें। ध्यान रहे कि बोआई के समय मिट्टी में भरपूर नमी हो।
  2. गेहूं की बुवाई के 20-25 दिन पर 5-6 सेंटीमीटर की पहली सिंचाई ताजमुल अवस्था पर और दूसरे सिंचाई 40-45 दिन पर कर कल्ले निकलते समय करें। 
  3. इस समय बोआई के लिए पी०वी०डब्ल्यू 373, मालवीय-234, यू०पी० 2425 तथा डी०बी डब्ल्यू०-16 प्रजातियाँ उपयुक्त हैं।
  4. देर से बोये गेहूँ की बढ़वार कम होती है और कल्ले भी कम निकलते हैं। इसलिए प्रति हेक्टेयर बीज दर बढ़ाकर 125 किग्रा कर लें, लेकिन अगर यू०पी० 2425 प्रजाति ले रहे हैं, तो प्रति हेक्टेयर 150 किग्रा बीज लगेगा।
  5. बोआई कतारों में हल के पीछे कूड़ों में या फर्टीसीड ड्रिल से करें।
  6. गेहूँसा या गेहूँ के मामा की रोकथाम के लिए प्रति हेक्टेयर 75 प्रतिशत वाली आइसोप्रोट्यूरान 1.25 किग्रा या सल्फोसल्फ्यूरान 75 डब्लू०जी० की 33 ग्राम मात्रा 500-600 ली० पानी में घोलकर पहली सिंचाई के बाद, परन्तु 30 दिन के अवस्था से पूर्व छिड़काव करना चाहिए।
  7. सल्फोसल्फ्यूरान का प्रयोग करने पर चौड़ी पत्ती वाले खरपतवार व गेहूँसा, दोनों का नियंत्रण हो जाता है।
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जौ:

  1. जौ में पहली सिंचाई बोआई के 30-35 दिन बाद कल्ले बनते समय करनी चाहिए।

चना:

  1. बोआई के 45 से 60 दिन के बीच पहली सिंचाई कर दें।
  2. झुलसा रोग की रोकथाम के लिए प्रति हेक्टेयर 2.0 किग्रा 500-600 लीटर (मैंकोजेव 75 प्रतिशत 50 डब्यू०पी०) को पानी में घोलकर 10 दिन के अन्तर पर दो बार छिड़काव करें।

मटर:

  1. बोआई के 35-40 दिन पर पहली सिंचाई करें।
  2. खेत की गुड़ाई करना भी फायदेमन्द होगा।

मसूर:

  1. बोआई के 45 दिन बाद पहली हल्की सिंचार्इ करें। ध्यान रखे, खेत में पानी खड़ा न रहे।

राई-सरसों:

  1. बोआई के 55-65 दिन पर फूल निकलने के पहले ही दूसरी सिंचाई कर दें।

शीतकालीन मक्का:

  1. मक्का की बोआई के 20-25 दिन बाद पहली निराई-गुड़ाई करके सिंचाई कर दें और पुनः समुचित नमी बनाये रखने के लिए समय-समय पर सिंचाई करते रहें।

शरदकालीन गन्ना:

  1. आवश्यकतानुसार सिंचाई करते रहें। इससे गन्ना सूखने नहीं पायेगा और वजनी भी बनेगा।

बरसीम:

  1. बोआई के 45 दिन बाद पहली कटाई करें। फिर हर 20-25 दिन पर कटाई करते रहें।
  2. हर कटाई के बाद सिंचाई करना जरूरी है।

जई:

  1. हर तीन सप्ताह यानि 20-25 दिन पर सिंचाई करते रहें।

सब्जियों की खेती:

  1. दिसंबर माह सब्जियों के लिए काफी महत्वपूर्ण है। कुछ खेतों में फूलगोभी, पत्तागोभी, टमाटर, बैगन, मिर्ची, गाजर, मूली लगे हुए हैं तथा कुछ में लगाने की तैयारी है । इस माह कुछ अन्य सब्जियां भी लगा सकते हैं ।
  2. सब्जियों में आवश्यकतानुसार सिंचाई एवं निराई गुड़ाई करें।
  3. पौधे को पाला से बचाव के लिए छप्पर या धुएँ का प्रबंध करें।
  4. सब्जी मटर के में फूल आने के पूर्व एक हल्की सिंचाई कर दे आवश्यकतानुसार दूसरी सिंचाई फलिया बनते समय करनी चाहिए। 
  5. टमाटर की ग्रीष्म ऋतु की फसल के लिए पौधशाला में बीज की बुवाई कर दें।
  6. बसंत ग्रीष्म ऋतु की टमाटर की फसल के लिए तैयार पौधे की रोपाई करें।
  7. प्याज की रोपाई के लिए 7 से 8 सप्ताह पुरानी पौधे का प्रयोग करें।
  8. पौधे को पाले से बचाव के लिए छप्पर या धुएँ का प्रबन्ध करें।
  9. आलू में आवश्यकतानुसार 10-15 दिन के अन्तर पर सिंचाई करते रहें।
  10. देर से बोए आलू में सिंचाई कर दे और बुआई के 25 दिन बाद 87 से 108 किलोग्राम यूरिया का टॉप ड्रेसिंग करके मिट्टी चढ़ा दे।
  11. झुलसा एवं माहू के नियंत्रण हेतु मैकोजेब 2 ग्राम तथा फास्फेमिडान 0.6 मिलीलीटर प्रति लीटर पानी में मिलाकर 10-12 दिन के अन्तराल पर 2-3 छिड़काव करें।
  12. सब्जी मटर में फूल आने के पूर्व एक हल्की सिंचाई कर दें। आवश्यकतानुसार दूसरी सिंचाई फलियाँ बनते समय करनी चाहिए।
  13. टमाटर की ग्रीष्म ऋतु की फसल के लिए पौधशाला में बीज की बोआई कर दें।
  14. प्याज की रोपाई के लिए 7-8 सप्ताह पुरानी पौध का प्रयोग करें।
  15. टमाटर एवं मिर्च में झुलसा रोग से बचाव के लिए मैकोजेब 0.2 प्रतिशत (2 ग्राम दवा प्रति लीटर पानी) का छिड़काव करें।
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बागवानी:

  1. बेर के फलों को गिरने से रोकने के लिए सुपर फिक्स हार्मोन 1 मिलीलीटर प्रति 4.5 लीटर पानी में घोलकर छिड़काव करें।
  2. पुराने बागों में इंटर क्रॉपिंग के रूप में हल्दी व अदरक की फसल में आवश्यकतानुसार सिंचाई करें।
  3. बागवानी वाले फसलों को आवश्यकतानुसार सिंचाई करते रहे।
  4. आम तथा लीची में ‘मिलीबग’ की रोकथाम के लिए प्रति वृक्ष 250 ग्राम मिथाइल पैराथियान का बुरकाव पेड़ के एक मीटर के घेरे में कर दें। फिर पेड़ के तनेपर जमीन से 30-40 सेन्टीमीटर की ऊँचार्इ पर 400 गेज वाली एल्काथीन की 30 सेन्टीमीटर चौड़ी पट्टी सुतली आदि से कसकर बांध दें और उसके दोनों सिरों पर गीली मिट्टी या ग्रीस से लेप कर दें। पेड़ पर मिली बग का प्रकोप नहीं होगा।

पुष्प व सुगन्ध पौधे:

  1. गुलाब में बडिंग और सिंचाई एवं निराई गुड़ाई करें
  2. ग्लैडियोलस में आवश्यकतानुसार सिंचाई एवं निराई-गुड़ाई करें। मुरझाई टहनियों को निकालते रहें और बीज न बनने दें।
  3. मेंथा के लिए भूमि की तैयारी के समय अन्तिम जुताई पर प्रति हेक्टेयर 100 कुन्टल गोबर की खाद, 40-50 किग्रा नाइट्रोजन, 50-60 किग्रा फास्फेट एवं 40-45 किग्रा० पोटाश भूमि में मिला दें।

मुर्गीपालन:

  1. अण्डा देने वाली मुर्गियों को लेयर फीड दें और सीप का चूरा भी दें। बरसीम का हरा चारा भी थोड़ी मात्रा में दे सकते हैं।
  2. चूजों को ठंड से बचाने हेतु पर्याप्त गर्मी की व्यवस्था करायें।

पशुपालन/दुग्ध विकास:

  1. पशुओं को ठंड से बचाये रखे।
  2. हरे चारे के साथ दाना भी पर्याप्त मात्रा में दें।
  3. पशुओं में लिवर के कीड़ों (लीवर फ्लूक) से रोकथाम के लिए कृमिनाशक पिलायें।
  4. खुरपका, मुंहपका रोग से बचाव के लिए टीका लगवाएं।

पशु को आहार देने के कुछ मूल नियम:

  1. पशु का आहार दिन में दो बार 8-10 घंटे के अंतराल पर चारा पानी देना चाहिए
  2. इससे पाचन क्रिया ठीक रहती है एवं बीच में जुगाली करने का समय भी मिल जाता है
  3. पशु का आहार सस्ता, साफ़, स्वादिष्ट एवं पाचक हो | चारे में 1/3 भाग हरा चारा एवं 2/3 भाग सूखा चारा होना चाहिए
  4. पशु को जो आहार दिया जाए उसमें विभिन्न प्रकार के चारे-दाने मिले हों
  5. चारे में सूखा एवं सख्त डंठल नहीं हो बल्कि ये भली भांति काटा हुआ एवं मुलायम होना चाहिए इसी प्रकार जौ,चना, मटर, मक्का इत्यादि दली हुई हो तथा इसे पक्का कर या भिंगो कर एवं फुला कर देना चाहिए
  6. दाने को अचानक नहीं बदलना चाहिए बल्कि इसे धीरे-धीरे एवं थोड़ा-थोड़ा कर बदलना चाहिए
  7. पशु को उसकी आवश्यकतानुसार ही आहार देना चाहिए | कम या ज्यादा नहीं
  8. नांद एकदम साफ होनी चाहिए, नया चारा डालने से पूर्व पहले का जूठन साफ़ कर लेना चाहिए
  9. गायों को 2-2.5 किलोग्राम शुष्क पदार्थ एवं भैंसों को 3.0 किलोग्राम प्रति 100 किलोग्राम वजन भार के हिसाब से देना चाहिए

 

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