जनवरी माह के कृषि कार्य | Agriculture work for the month of January

जनवरी में बोई जाने वाली सब्जियां | जनवरी महीने में कौन सी खेती करें | जनवरी में बोई जाने वाली फसल | जनवरी में बोई जाने वाली फसलें | जनवरी माह के कृषि एवं बागवानी कार्य | January mah ke krishi karya | Agriculture work for the month of January |जनवरी माह के कृषि कार्य

जनवरी माह के कृषि कार्य | Agriculture work for the month of January:

फसलोत्पादन:

गेहूँ:

  1. गेहूँ में दूसरी सिंचाई बोआई के 40-45 दिन बाद कल्ले निकलते समय और तीसरी सिंचाई बोआई के 60-65 दिन बाद गांठ बनने की अवस्था पर करें।
  2. देर से बोये गये गेहूं में पहली सिंचाई बुवाई के 17-18 दिन बाद  करें । बाद कि सिंचाई 15-20 के अंतराल पर करनी चाहिए। 
  3. गेहूँ की फसल को चूहों से बचाने के लिए जिंक फास्फाइड से बने चारे अथवा एल्यूमिनियम फास्फाइड की टिकिया का प्रयोग करें।

जौ: 

  1. जौ में दूसरी सिंचाई, बोआई के 55-60 दिन बाद गांठ बनने की अवस्था पर करें।
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चना: 

  1. हल्की दोमट मिट्टी की फूल आने से पहले ही दूसरी सिंचाई कर दे ।
  2. भारी भूमि में फूल आने के पहले एक से ही प्राप्त होती है ।  
  3. सिंचाई के लगभग 1 सप्ताह बाद ओट आने से पहले हल्की गुड़ाई करना लाभदायक होता है। 
  4. फूल आने के पहले एक सिंचाई अवश्य करें।
  5. फसल में उकठा रोग की रोकथाम के लिए बुआई से पूर्व ट्राइकोडरमा 2.5 किग्रा प्रति हेक्टेयर 60-75 किग्रा सड़ी हुई गोबर की खाद में मिला कर भूमि शोधन करना चाहिये।

मटर:

  1. मटर में बुकनी रोग (पाउडरी मिल्ड्यू) जिसमें पत्तियों, तनों तथा फलियों पर सफेद चूर्ण सा फैल जाता है, की रोकथाम के लिए प्रति हेक्टेयर घुलनशील गंधक 80%, 2.0 किग्रा 500 – 600 लीटर पानी में घोलकर 10-12 दिन के अन्तराल पर छिड़काव करें।

राई-सरसों:

  1. राई-सरसों में दाना भरने की अवस्था में दूसरी सिंचाई करें।
  2. माहू कीट पत्ती, तना व फली सहित सम्पूर्ण पौधे से रस चूसता है। इसके नियंत्रण के लिए प्रति हेक्टेयर डाइमेथोएट 30% ई.सी. की 1 लीटर मात्रा 650 – 750 लीटर पानी में घोलकर छिड़काव करें।

शीतकालीन मक्का:

  1. खेत में दूसरी निराई-गुड़ाई, बोआई के 40-45 दिन बाद करके खरपतवार निकाल दें।
  2. मक्का में दूसरी सिंचाई बोआई के 55-60 दिन बाद व तीसरी सिंचाई बोआई के 75-80 दिन बाद करनी चाहिए।
  3. नाइट्रोजन का प्रयोग टॉप ड्रेसिंग,  जीरा निकलने के पूर्व करें। उर्वरक प्रयोग के समय खेत में पर्याप्त नमी होनी चाहिए । 
  4. यदि भुट्टे के रूप में प्रयोग करना हो तो रसायन का प्रयोग ना करें। 

शरदकालीन गन्ना: 

  1. आवश्यकतानुसार सिंचाई करते रहें।
  2. गन्ना को विभिन्न प्रकार के तनाछेदक कीटों से बचाने के लिए प्रति हेक्टेयर 30 किग्रा कार्बोफ्युरॉन 3% सी0 जी0 का प्रयोग करें।
  3. फसल काट लेने के पश्चात खरपतवार नियंत्रण के लिए सिंचाई करके ओट आने पर गुड़ाई कर दें ।

जई:

  1. जाई में 20-25 दिन के अंतराल पर सिंचाई करें। 
  2. पहली कटाई, बुवाई के 55 दिन बात करें और फिर नाइट्रोजन का टॉप ड्रेसिंग कर दे। 

बरसीम:

कटाई व सिंचाई 20-25 दिन के अन्तराल पर करें। प्रत्येक कटाई के बाद भी सिंचाई करें।

सब्जियों की खेती:

  1. आलू, टमाटर तथा मिर्च में पिछेती झुलसा से बचाव हेतु मैंकोजेब 75% डब्ल्यू. पी. की 2 किग्रा मात्रा प्रतिहेक्टेयर 500-600 ली0 पानी में घोल कर छिड़काव करें।
  2. मटर में फूल आते समय हल्की सिंचाई करें। आवश्यकतानुसार दूसरी सिंचाई फलियाँ बनते समय करनी चाहिए।
  3. गोभीवर्गीय सब्जियों की फसल में सिंचाई, गुड़ाई तथा मिट्टी चढ़ाने का कार्य करें।
  4. पहले में रोपे गए टमाटर में सिंचाई निराई-गुड़ाई व स्टेकिंग (सहारा देना) का कार्य करें। 
  5. टमाटर की ग्रीष्मकालीन फसल के लिए रोपाई कर दें।
  6. टमाटर की ग्रीष्म ऋतु की फसल के लिए कम व अधिक बढ़ने वाले दोनों प्रकार की प्रजातियां की रोपाई 60X45 CM पर करें। 
  7. लहसुन की फसल में 15 दिन के अंतराल पर सिंचाई तथा गुड़ाई करें।
  8. लहसुन में नाइट्रोजन की दूसरी और अंतिम टॉप ड्रेसिंग बुवाई के 60 दिन बाद करनी चाहिए। 
  9. माह के दूसरे सप्ताह तक प्याज की रोपाई कर दें। 
  10. पालक की पत्तियों काटकर बाजार भेजें । यदि पालक के बीज लेना हो तो पत्तियां काटना बंद करें । 
  11. जायद में मिर्च तथा भिण्डी की फसल के लिए खेत की तैयारी अभी से आरम्भ कर दें।
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बागवानी:

  1. बागों की निराई-गुड़ाई एवं सफाई का कार्य करें।
  2. आम के नवरोपित एवं अमरूद, पपीता एवं लीची के बागों की सिंचाई करें।
  3. आम के भुनगा कीट से बचाव हेतु मोनोक्रोटोफास 36% एस. एल. 1.5 मिली. प्रतिलीटर पानी की दर से छिड़काव करें।
  4. आंवला के बाग में गुड़ाई करें एवं थाले बनायें।
  5. आंवला के एक वर्ष के पौधे के लिए 10 किग्रा गोबर/ कम्पोस्ट खाद, 100 ग्राम नाइट्रोजन, 50 ग्राम फास्फेट व 75 ग्राम पोटाश देना आवश्यक होगा। 10 वर्ष या उससे ऊपर के पौधे में यह मात्रा बढ़कर 100 किग्रा गोबर/कम्पोस्ट खाद, 1 किग्रा नाइट्रोजन, 500 ग्राम फास्फेट व 750 ग्राम पोटाश हो जायेगी। उक्त मात्रा से पूरा फास्फोरस, आधी नाइट्रोजन व आधी पोटाश की मात्रा का प्रयोग जनवरी माह से करें।
  6. अंगूर में कटाई-छटाई का कार्य पूरा कर ले। 
  7. अंगूर में प्रथम वर्ष गोबर\ कंपोस्ट खाद के अलावा 100 ग्राम नाइट्रोजन, 60 ग्राम फास्फेट,  80 ग्राम पोटाश प्रति पौधा आवश्यक होता है। फास्फोरस की संपूर्ण मात्रा तथा नाइट्रोजन व पोटाश की आधी मात्रा कटाई-छटाई के बाद जनवरी माह में दें। 

पुष्प व सगन्ध पौधे:

  1. गुलाब में समय-समय पर सिंचाई एवं निराई गुड़ाई करें तथा आवश्यकतानुसार बंडिंग व इसके जमीन में लगाने का कार्य कर लें।
  2. ग्लेडियोलस की मुरझाई हुई टहनियों को निकाल दें तथा आवश्यकतानुसार सिंचाई करें। 
  3. मेंथा के सकर्स की रोपाई कर दें। एक हेक्टेयर के लिए 2.5-5.0 कुन्टल सकर्स आवश्यक होगा।
  4. HY- 77, कोसी  व गोमती मेंथा की उपयुक्त प्रजातियां हैं। 
  5. मेंथा की रोपाई 45 से 60 सेंटीमीटर पर बनी लाइन में 2-3 सेंटीमीटर गहराई में करते हैं। 

मुर्गीपालन:

  1. अण्डे देने वाली मुर्गियों को लेयर फीड दें।
  2. ब्रायलर के लिए के लिए 1 दिन चूची पाले। 
  3. चूजों को पर्याप्त रोशनी तथा गर्मी दें।

पशुपालन/दुग्ध विकास:

  1. पशुओं को ठंड से बचायें। उन्हें टाट/बोरे से ढकें। और पशुशाला में जलती आग न छोड़ें।
  2. पशुशाला में बिछाली को सूखा रखें।
  3. पशुओं के भोजन में दाने की मात्रा बढ़ा दें।
  4. पशुओं में लीवर फ्लूक नियंत्रण हेतु कृमिनाशक दवा पिलवायें।
  5. खुरपका, मुँहपका रोग से बचाव के लिए टीका अवश्य लगवायें।

पशुओं के आहार तैयार करने से पहले ध्यान रखने योग्य कुछ मुख्य बातें:

  1. आहार में सभी पोषक तत्व उचित मात्रा में होने चाहिए।
  2. आहार होने के साथ-साथ पशु को संतुष्टि प्रदान करने वाला भी होना चाहिए।
  3. थोड़ा भारीपन (स्थूल) भी होना चाहिए।
  4. आहार संतुलित हो लेकिन विषैला नहीं होना चाहिए।
  5. सस्ता, ताजा तथा पर्याप्त मात्रा में प्रोटीन युक्त होना चाहिए।
  6. उचित समय अंतराल पर दिन में केवल दो बार आहार देना चाहिए ताकि पाचन क्रिया ठीक रहे।
  7. हरे चारे को साल भर देने का प्रयास करना चाहिए।
  8. पुआल को भिगोंकर ही देना चाहिए, इसके अलावा दाना को हमेशा पानी में फुलाकर ही खिलाना चाहिए जिससे उसकी पौष्टिकता बढ़ जाती है।
  9. बछड़े,गाय, गर्भवती गाय,भार वहन करने वाले बैल, सांड,सुखी गर्भवती गाय तथा बढ़ने वाले पशुओं को दिए जाने वाले आहार अलग-अलग प्रकार के होते हैं ।

पशु को आहार देने के कुछ मूल नियम:

  1. पशु का आहार दिन में दो बार 8-10 घंटे के अंतराल पर चारा पानी देना चाहिए
  2. इससे पाचन क्रिया ठीक रहती है एवं बीच में जुगाली करने का समय भी मिल जाता है
  3. पशु का आहार सस्ता, साफ़, स्वादिष्ट एवं पाचक हो | चारे में 1/3 भाग हरा चारा एवं 2/3 भाग सूखा चारा होना चाहिए
  4. पशु को जो आहार दिया जाए उसमें विभिन्न प्रकार के चारे-दाने मिले हों
  5. चारे में सूखा एवं सख्त डंठल नहीं हो बल्कि ये भली भांति काटा हुआ एवं मुलायम होना चाहिए इसी प्रकार जौ,चना, मटर, मक्का इत्यादि दली हुई हो तथा इसे पक्का कर या भिंगो कर एवं फुला कर देना चाहिए
  6. दाने को अचानक नहीं बदलना चाहिए बल्कि इसे धीरे-धीरे एवं थोड़ा-थोड़ा कर बदलना चाहिए
  7. पशु को उसकी आवश्यकतानुसार ही आहार देना चाहिए | कम या ज्यादा नहीं
  8. नांद एकदम साफ होनी चाहिए, नया चारा डालने से पूर्व पहले का जूठन साफ़ कर लेना चाहिए
  9. गायों को 2-2.5 किलोग्राम शुष्क पदार्थ एवं भैंसों को 3.0 किलोग्राम प्रति 100 किलोग्राम वजन भार के हिसाब से देना चाहिए

 

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