जुलाई माह के कृषि कार्य | Agriculture work for the month of July

जुलाई में बोई जाने वाली सब्जियां | जुलाई महीने में कौन सी खेती करें | जुलाई में बोई जाने वाली फसल | जुलाई में बोई जाने वाली फसलें |जुलाई माह के कृषि एवं बागवानी कार्य | July mah ke krishi karya | Agriculture work for the month of July |जुलाई माह के कृषि कार्य

जुलाई माह के कृषि कार्य | Agriculture work for the month of July:

इस माह में कृषि मुख्य तथ्या:

  1. जुलाई माह, खरीफ की फसलों के लिए सबसे महत्वपूर्ण महीनों है। 
  2. खरीफ फसलों में कई मुख्य सब्जियों की खेती होती है।
  3. सब्ज़ियों की खेती करने वाले किसानों को जुलाई माह में खेती की तैयारी कर लेनी चाहिये।
  4. बारिश की मात्रा भले ही पहले जितनी हो, पहले बारिश रह-रहकर पूरे खरीफ मौसम में चलती रहती थी आरै फसल को अपने पूरे जीवनकाल में सिंचाई रहती है।
  5. इस माह में अधिक या अचानक अधिक वर्षा होने की संभावना होती है, नुकसान से बचने के लिए फसलों में सिंचाई के लिए बनाई नालियां को जल-निकास की व्यवस्था कर लेनी चाहिए है। खेत में पानी जमा होने से फसलों का भारी नुकसान हो सकता है ।
  6. जुलाई माह में नत्रजन खाद देते समय वर्षा का विशेष ध्यान रखें । जमीन में काफी नमी होनी चाहिए ताकि यूरिया पूरी तरह धुल जाय, परन्तु अधिक नमी या तुरंत बरसात होने की स्थिति में यूरिया तबतक न डालें जबतक जमीन में नमी उचित मात्रा में नहीं रह जाती अन्यथा बहुत सी नत्रजन पानी के साथ बह जायेगी ।
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फसलोत्पादन:

धान:

  1. धान की मध्यम व देर से पकने वाली प्रजातियों की रोपाई माह के प्रथम पखवाड़े में पूरा कर लें।
  2. शीघ्र पकने वाली प्रजातियों की रोपाई जुलाई के दूसरे पखवाड़े तक की जा सकती है।
  3. सुगन्धित प्रजातियों की रोपाई माह के अन्त में करें।
  4. यदि हरी खाद का प्रयोग करना हो तो रोपाई के तीन दिन पूव ही उसे मिट्टी पलटने वाले हल से पलटकर, सड़ने के लिए खेत में पानी भर दें।
  5. भूमि में उर्वरक का प्रयोग मृदा परीक्षण के आधार पर करें।
  6. धान की रोपाई से पूर्व 25 किग्रा प्रति हेक्टेयर की दर से जिंक सल्फेट खेत में मिला दें, परन्तु ध्यान रहे कि फास्फोरस वाले उर्वरक के साथ जिंक सल्फेट कभी न मिलायें।
  7. धान की फसल में खरपतवार नियंत्रण के लिए रोपाई के 3-4 दिन के अन्दर ब्यूटाक्लोर 50 ई.सी. 3-4 लीटर 800 लीटर मात्रा प्रति हे0  पानी में घोलकर छिड़काव करें या 5 प्रतिशत ब्यूटाक्लोर ग्रेन्यूल की 30-40  किग्रा मात्रा प्रति हे0 का प्रयोग करें, एनिलोफास 30 ई.सी. की 1.65 लीटर मात्रा रोपाई के 3-4 दिन के अन्दर प्रयोग करें।
  8. ध्यान रहे कि खेत में दानेदार रसायनों के प्रयोग के समय 4 से 5 सेंटीमीटर पानी अवश्य भरा हो। 
  9. धान में खैरा रोग के लक्षण दिखाई देने पर प्रति हेक्टेयर 5 किलोग्राम जिंक सल्फेट व 2.5 किलोग्राम चुना 800 लीटर प्रति हेक्टेयर पानी में घोल बनाकर छिड़काव करें। 

बाजरा:

  1. बाजरा की बोआई 15 जुलाई के बाद पूरे माह की जा सकती है।
  2. बाजरा की बुवाई के लिए प्रति हेक्टेयर 4 से 5 किलोग्राम बीज की आवश्यकता होती है।

ज्वार: 

  1. ज्वार की बोआई माह के प्रथम पखवाड़े तक पूरी कर लें।
  2. ज्वार की बुवाई के लिए प्रति हेक्टेयर 12 से 15 किलोग्राम बीज की आवश्यकता होती है । 

मूँग/उर्द/अरहर:

  1. मूँग/उर्द/अरहर की फसल की बोआई के लिए उपयुक्त समय है।
  2. बोआई से पूर्व बीज को राइजोबियम कल्चर से अवश्य उपचारित करें।
  3. मूंग, उर्द की प्रति हेक्टेयर बुवाई के लिए 12 से 15 किलोग्राम बीज की आवश्यकता होती है। 
  4. बुवाई पूर्व बीज को राइजोबियम कल्चर से अवश्य उपचारित करें।
  5. अरहर की फसल में बुवाई के 25 से 30 दिन बाद निराई-गुड़ाई करके खरपतवार के साथ ही सघन पौधों को निकाल देना चाहिए। 
  6. खरपतवार की रासायनिक नियंत्रण के लिए पेंडीमैथलीन 30ईसी कि 3 लीटर मात्रा को 1000 लीटर पानी में घोलकर बोआई के 2 दिन के अंदर छिड़काव करे। 
  7. बोआई के तुरन्त बाद एलाक्लोर 50 ई.सी. की 4 लीटर मात्रा को 1000 लीटर पानी में घोलकर छिड़काव करें।

सोयाबीन:

  1. सोयाबीन की बोआई के लिए माह का प्रथम पखवाडा़ में करें।
  2. बोआई से पूर्व सोयाबीन के बीज को राइजोबियम कल्चर से उपचारित करना जरूरी है।
  3. खरपतवार के रासायनिक नियंत्रण के लिए बोआई के तुरन्त बाद एलाक्लोर 50 ई.सी. की 4 लीटर मात्रा को 1000 लीटर पानी में घोलकर छिड़काव करें।

मूँगफली:

  1. मूँगफली की बोआई माह के प्रथम सप्ताह तक पूरी कर लें।
  2. बोआई के 3 सप्ताह बाद निराई करके प्रति हेक्टेयर 100 किग्रा जिप्सम डालकर हल्की गुड़ाई कर दें।

गन्ना:

  1. गन्ने की फसल में मिट्टी चढ़ाने का कार्य इस माह पूरा कर लें।

सूरजमुखी:

  1. खरीफ में सूरजमुखी की बोआई माह के प्रथम पखवाड़े में करें।

चारे की फसलें:

  1. हरे चारे के लिए लोबिया, ज्वार, बहुकटाई वाली चरी, मक्का, बाजरा व ग्वार की बोआई करनी चाहिए।
  2. ज्वार, बाजरा, मक्का तथा लोबिया को 2:1 (ज्वार बाजरा या मक्का के दो लाइन के मध्य एक लाइन लोबिया) में बोने से अधिक पौष्टिक व अच्छा चारा प्राप्त होता है। 
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सब्जियों की खेती:

  1. बैंगन, मिर्च, अगेती फूलगोभी की रोपाई का समय है।
  2. जाड़े के टमाटर की फसल के लिए बीज की बोआई पौधशाला में करते हैं। इसके लिए मुक्त परागित किस्मों के लिए 350-400 ग्राम तथा संकर किस्मों के लिए 200-250 ग्राम बीज की आवश्यकता होगी।
  3. यदि खेत में पानी रुकने की संभावना हो तो अगेती फूलगोभी की रोपाई मेड पर करें
  4. खरीफ की प्याज के लिए पौधशाला में बीज की बोआई 10 जुलाई तक कर दें। प्रति हेक्टेयर रोपाई के लिए बीज दर 12-15 किग्रा प्रति हेक्टेयर होगी।
  5. कद्दूवर्गीय सब्जियों में बोआई के लगभग 25-30 दिन बाद पौधों के बढ़वार के समय प्रति हेक्टेयर 15-20 किग्रा नाइट्रोजन की टाप ड्रेसिंग करें।
  6. चौलाई की बरसात की फसल के लिए बुवाई पूरे महीने जा सकती है 1 हेक्टेयर की बुवाई के लिए 2 से 3 किलोग्राम बीज की आवश्यकता होती है। 
  7. बरसात वाली भिण्डी तथा अरवी की बोआई पूरी कर लें।
  8. किचन गार्डन (Kitchen Gardening) की बोआई की जा सकती है।

बागवानी: 

  1. आम, अमरूद, लीची, आँवला, कटहल, नींबू, जामुन, बेर, केला, पपीता के नये बाग लगाने का समय है।
  2. आम व लीची में रेडरस्ट तथा शूटी मोल्ड रोग की रोकथाम के लिए कापर आक्सीक्लोराइड 50 प्रतिशत डब्लू.पी. 0.3 प्रतिशत (3 ग्राम दवा प्रति लीटर पानी में घोलकर) का छिड़काव करें।
  3. लीची में गूटी बाँधने का कार्य करें।
  4. बेर में मिलीबग कीट की रोकथाम के लिए मोनोक्रोटोफास 36 ई.सी. 1.5 मिली प्रति लीटर पानी में घोलकर छिड़काव करें।
  5. आँवले के बागों में एफिस की रोकथाम के लिए मोनोक्रोटोफास 0.04 प्रतिशत का घोल बनाकर छिड़काव करें।

पुष्प व सगन्ध पौधे:

  1. रजनीगन्धा में बरसात न होने पर आवश्यकतानुसार सिंचाई एवं निराई-गुड़ाई तथा पोषक तत्वों के मिश्रण का 15 दिन के अन्तराल पर छिड़काव करें।
  2. रजनीगन्धा में स्पाइक (पुष्प डन्डियों) को समय-समय पर तोड़ें।

मुर्गीपालन:

  1. मुर्गीपालन को नमी तथा सीलन से बचायें।
  2. मुर्गीखाने में उचित प्रकाश की व्यवस्था करें।
  3. मुर्गीखाने एवं प्रयोग किये जाने वाले बर्तनों की धूल व गन्दगी की प्रतिदिन सफाई करें।
  4. अण्डे व मीट के लिए उपयुक्त प्रजातियों का चयन करें।

पशुपालन/दुग्ध विकास:

  1. गलाघोंटू तथा बी.क्यू. का टीका लगवायें।
  2. पशुओं को पेट के कीड़े मारने की दवा पिलायें।
  3. पशुओं को बरसात से बचाव हेतु पूरा प्रबन्ध करें। फर्श तथा बिछावन को सूखा रखें।
  4. पशुपालन को साफ सुथरा रखें तथा पशुओं का मक्खी और मच्छर से बचाव रखें ।

 

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