जून माह के कृषि कार्य | Agriculture work for the month of June
जून में बोई जाने वाली सब्जियां | जून महीने में कौन सी खेती करें | जून में बोई जाने वाली फसल | जून में बोई जाने वाली फसलें |जून माह के कृषि एवं बागवानी कार्य | June mah ke krishi karya | Agriculture work for the month of June |
इस माह में खाली खेतों में खरीफ फसलों की बुआई के लिए तैयारी शुरू हो जाती है। इस समय खरीफ की फसलों की बुआई के लिए कार्य शुरू की जाती है। अधिक वर्षा वाले क्षेत्रों के साथ सिंचाई की समुचित व्यवस्था वाले क्षेत्रों में धान की रोपाई के लिए पौध तैयार की जाती है।
जून माह के कृषि कार्य | Agriculture work for the month of June:
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इस माह में कृषि मुख्य तथ्या:
- मई-जून में खेतों की गहरी जुताई करनी चाहिए क्योकि जुताई से खेतों में सारे हानिकारक कीट और रोगाणु ऊपरी सतह पर आ जाते हैं और धूप में नष्ट हो जाते हैं।
- इस माह में कीट आरै रोग रोकने का यह ऐसा प्रकृति तरीका है।
- इस माह में किसी भी रसायन से अधिक कारगर है।
- इस माह में आगामी फसल में उगाने के लिए खेत संरक्षित हो जाता है।
- बारिश की मात्रा भले ही पहले जितनी हो, पहले बारिश रह-रहकर पूरे खरीफ मौसम में चलती रहती थी आरै फसल को अपने पूरे जीवनकाल में सिंचाई रहती है।
- कभी-कभी अधिक वर्षा होती है, अधिक वर्षा के पानी को अपने खेतों में ही संचित करें, ताकि सूखे के दौरान सिंचाई के लिए पानी उपलब्ध रहे। इस प्रकार के संचयन को कहा गया है, ‘गावं का पानी गांव में, खेत का पानी खेत में।
- खेती में जितना महत्व वर्षा का है, उतना ही महत्व गर्मी का भी है।
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मिट्टी परीक्षण (Soil Testing):
- मई-जून माह में खेत खाली होने पर मिट्टी के नमूने ले लें।
- 3 वर्षों में एक बार अपने खेत का मिट्टी परीक्षण अवश्य करवाएं ताकि, मिट्टी में उपलब्ध पोषक तत्वों (नत्रजन, फास्फोरस, पोटाशियम, सल्फर, जिक, लोहा, तांबा, मैंगनीज व अन्य) की मात्रा तथा फसलों में कौन सी खाद कब व कितनी मात्रा में डालनी है, का पता चल सके।
अन्न भण्डरण ( खाद्य सुरक्षा):
- खरीफ की फसलों के दानों को कीड़े बहुत नुकसान पहुचातें हैं, इनसे बचाव के लिए अन्न को धूप में अच्छी तरह सुखा लें तथा साफ कर लें।
- गोदान में सुराख व दरारें अच्छी तरह बंद कर लें। नई बोरियां प्रयोग में लाएं।
फसलोत्पादन:
धान :
- यदि मई के अन्तिम सप्ताह में धान की नर्सरी नहीं डाली हो तो जून के प्रथम पखवाड़े तक पूरा कर लें। जबकि सुगन्धित प्रजातियों की नर्सरी जून के तीसरे सप्ताह में डालनी चाहिए।
- धान की महीन किस्मों की प्रति हेक्टेयर बीज दर 30 किग्रा, मध्यम के लिए 35 किग्रा, मोटे धान हेतु 40 किग्रा तथा ऊसर भूमि के लिए 60 किग्रा पर्याप्त होता है, जबकि संकर किस्मों के लिए प्रति हेक्टेयर 20 किग्रा बीज की आवश्यकता होती है।
- यदि नर्सरी में खैरा रागे दिखाई दे तो 10 वर्ग मीटर क्षत्रे में 20 ग्राम यूरिया, 5 ग्राम जिकं सल्फटे प्रति लीटर पानी में घोलकर छिड़काव करें।
मक्का:
- मक्का की बोआई 25 जून तक पूरी कर लें। यदि सिंचाई की सुविधा उपलब्ध हो तो बोआई 15 जून तक कर लेनी चाहिए।
- संकर मक्का की शक्तिमान-1, एच.क्यू.पी.एम.-1, संकुल मक्का की तरूण, नवीन, कंचन, श्वेता तथा जौनपुरी सफेद व मेरठ पीली देशी प्रजातियाँ हैं।
- संकर (Hybrid ) प्रजातियों के लिए प्रति हेक्टेयर 18 से 20 किलोग्राम संकुल (Composite) प्रजातियों के लिए 20 से 25 किलोग्राम बीज की आवश्यकता होती है ।
अरहर:
- सिंचित दशा में अरहर की बोआई जून के प्रथम सप्ताह में, अन्यथा सिंचाई के अभाव में वर्षा प्रारम्भ होने पर ही करें।
- प्रभात व यू.पी.ए.एस.-120 शीघ्र पकने वाली तथा बहार, नरेन्द्र अरहर-1 व मालवीय अरहर-15 देर से पकने वाली अच्छी प्रजाति है।
- प्रति हेक्टेयर क्षेत्र के लिए 12-15 किग्रा बीज आवश्यक होगा।
- अरहर का राइजोबियम कल्चर से उपचारित बीज 60-75×15-20 सेंमी की दूरी पर बोयें।
ज्वार:
- ज्वार की बुवाई जून के अंतिम सप्ताह में करें।
- ज्वार के लिए प्रति हेक्टेयर 12 से 15 किलोग्राम बीज की आवश्यकता होती है।
- ज्वार की प्रमुख उन्नत किस्में वर्षा, सीएसबी-13, सीएसबी-15, सीएसएच-5, सीएसएच-9, सीएसएच-14 और सीएसएच-16 हैं।
सूरजमुखी/उर्द/मूँग:
- जायद में बोई गई सूरजमुखी व उर्द की कटाई मड़ाई का कार्य तथा मूँग की फलियों की तुड़ाई का कार्य 20 जून तक अवश्य पूरा कर लें।
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मूंगफली:
- मूंगफली की बुवाई जून से दूसरे पखवाड़े में करना चाहिए।
- मूंगफली की टी-64, कौशल गुच्छेदार तथा चंद्र व टी-28 फैलने वाली अच्छी प्रजातियां है।
- मूंगफली में फैलने वाले प्रजातियों की 80 से 100 किलोग्राम बीज की मात्रा तथा गुच्छेदार प्रजातियों की 60 से 80 किलोग्राम मात्रा प्रति हेक्टेयर आवश्यकता होती है।
चारे की फसलें:
- चारे के लिए ज्वार, लोबिया व बहुकटाई वाली चरी की बोआई कर दें। वर्षा न होने की दशा में पलेवा देकर बोआई की जा सकती है।
गर्मी की जुताई व मेड़बन्दी:
- रबी की फसल काटने के उपरांत यदि गर्मी की जुताई न की हो तो इस कार्य को पूरा कर ले ।
- वर्षा से पूर्व खेत में अच्छी मेड़बन्दी कर दें, जिससे खेत की मिट्टी न बहे तथा खेत वर्षा का पानी सोख सके।
सब्जियों की खेती:
- बुवाई से पहले प्रति किलोग्राम बीज को 4 ग्राम ट्राइकोडर्मा अथवा 2 ग्राम थायरम या कैप्टान से उपचारित करके ही बुवाई करें।
- बैंगन, मिर्च, अगेती फूलगोभी की पौध बोने का समय है।
- बैंगन, टमाटर व मिर्च की फसलों में सिंचाई व आवश्यकतानुसार निराई-गुड़ाई करें।
- भिण्डी की फसल की बोआई के लिए उपयुक्त समय है। परभनी क्रान्ति, आजाद भिण्डी, अर्का अनामिका, वर्षा, उपहार, वी.आरओ.- 5, वी.आर.ओ.-6 व आई.आई.वी.आर.-10 भिण्डी की अच्छी किस्में हैं।
- लौकी, खीरा, चिकनी तोरी, आरा तोरी, करेला व टिण्डा की बोआई के लिए उपयुक्त समय हैं।
बागवानी:
- इस महीने किचन गार्डन (Kitchen Gardening) की बोआई की जा सकती है।
- नये बाग के रोपण हेतु प्रति गड्ढा 30-40 किग्रा सड़ी गोबर की खाद, एक किग्रा नीम की खली तथा आधी गड्ढे से निकली मिट्टी मिलाकर भरें। गड्ढे को जमीन से 15-20 सेमी. ऊँचाई तक भरना चाहिए।
- केला की रोपाई के लिए उपयुक्त समय है। रोपण हेतु तीन माह पुरानी, तलवारनुमा, स्वस्थ व रोगमुक्त पुत्ती का ही प्रयोग करें।
- पुत्तीयों के ऊपरी तानें की कंद से 25 से 30 सेंटीमीटर पर काट दें।
- रोपाई से पूर्व सभी पुत्तीयों को 1 ग्राम बविस्टीन प्रति लीटर पानी के घोल में उपचारित कर ले।
- रोपाई के समय केवल कंद भाग को ही मिट्टी में दबाए तथा रोपाई के बाद सिंचाई कर दें।
- पपीते में सितंबर-अक्टूबर में लगाए गए पौधों में अतिरिक्त नर पौधों को निकाल दे।
- लीची में गूटी बांधने का कार्य माह के दूसरे पखवाड़े में करें। इसमें मिलीबग के रोकथाम के लिए थालो में 2% फालीडाल धूल (Dust) डालकर गुड़ाई कर दे।
- पुराने बागों में इंटरक्रॉपिंग के रूप में हल्दी व अदरक बोआई करें।
- बेर में कटाई-छटाई का कार्य कर ले।
- आम में ग्राफ्टिंग का कार्य करें।
वानिकी:
- पापलर की नर्सरी व पुराने पौधों की एक सप्ताह के अन्तराल पर सिंचाई करते रहें।
पुष्प व सुगन्ध पौधे:
- देशी गुलाब एवं गेंदा में खरपतवार निकालें व आवश्यकतानुसार सिंचाई करते रहें।
- रजनीगंधा की फसल से प्रति स्पाइक फूलों की संख्या व स्पाइक की लम्बाई बढ़ाने के लिए जी.ए. (जिब्रेलिक एसिड) 50 मिग्रा प्रति लीटर पानी में घोलकर पर्णीय छिड़काव करें।
- बेला तथा लिली में आवश्यकतानुसार सिंचाई, निराई व गुड़ाई करें।
- माह के अन्त में मेंथा की फसल की दूसरी कटाई कर लें।
पशुपालन/दुग्ध विकास:
- पशुओं को धूप-लू से बचायें।
- स्वच्छ पानी की पर्याप्त व्यवस्था करें।
- पशुओं को परजीवी की दवा पिलायें।
- बचा हुआ अथवा बासी चारा पशुओं को ना खिलाए।
- सूखे खेत की कम विकसित हुई चरी ना खिलाए जहर फैलने का डर रहता है। जिससे पशु बीमार हो सकते हैं।
मुर्गीपालन:
- मुर्गियों को गर्मी से बचायें-पर्दों पर पानी के छीटें मारें।
- निरन्तर स्वच्छ जल की उपलब्धता बनाये रखें।
- दोपहर के समय पानी में ग्लूकोस, विटामिन तथा लू से बचने के लिए इलेक्ट्रोलाइट दे।