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मार्च माह के कृषि कार्य | Agriculture work for the month of March

मार्च माह के कृषि कार्य | मार्च में बोई जाने वाली सब्जियां | मार्च महीने में कौन सी खेती करें | मार्च में बोई जाने वाली फसल | मार्च में बोई जाने वाली फसलें | मार्च माह के कृषि एवं बागवानी कार्य | March mah ke krishi karya | Agriculture work for the month of March |मार्च माह के कृषि कार्य

मार्च माह के कृषि कार्य | Agriculture work for the month of March:

फसलोत्पादन:

गेहूँ:

  1. बोआई के समय के अनुसार गेहूँ में दाने की दुधियावस्था में 5वीं सिंचाई बोआई के 100-105 दिन की अवस्था पर और छठीं अन्तिम सिंचाई बोआई के 115-120 दिन बाद दाने भरते समय करें।
  2. जिस गेहूं की बुवाई मध्य दिसंबर के आसपास हुई हो उनमें चौथी सिंचाई पुष्पा अवस्था पर और पांचवी सिंचाई दूधिया अवस्था पर करनी चाहिए। 
  3. गेहूं की फसल को चूहे से बचाने के लिए जिंक फास्फाइड से बने चारे या आटे की गोली अथवा एल्यूमीनियम फास्फाइड की टिकिया चूहे के बिल में रखकर बंद कर देनी चाहिए। 
  4. गेहूँ में इस समय हल्की सिंचाई (5 सेंमी) ही करें। तेज हवा चलने की स्थिति में सिंचाई करें, अन्यथा फसल गिरने का डर रहता है।

जौ: 

  1. यदि जौ की बोआई देर से हो तो इसमें तीसरे और अन्तिम सिंचाई दुधियावस्था में बोआई के 95-100 दिन की अवस्था में करें।

चना:

  1. चने की फसल में दाने बनने की अवस्था में सिंचाई करें। 
  2. चने की फसल में दाना बनने की अवस्था में फलीछेदक कीट का अत्याधिक प्रकोप होता है। फली छेदक कीट की रोकथाम के लिए जैविक नियंत्रण हेतु एन.पी. वी. (एच.) 25 प्रतिशत एल. . 250-300 लीटर पानी में घोलकर छिड़काव करें।

गन्ना:

  1. गन्ना की बोआई का कार्य 15-20 मार्च तक पूरा कर लें।
  2. गन्ने की दो कतारों के मध्य उर्द अथवा मूँग की दोदो कतारें या भिण्डी की एक कतार मिलवाँ फसल के रूप में बोई जा सकती है।
  3. यदि गन्ने के साथ सहफसली खेती करनी हो तो गन्ने की दो कतारों के बीच की दूरी 90 सेंमी रखें।
  4. गन्ने की पेड़ी से अच्छी उपज प्राप्त करने के लिए खेत से खरपतवार निकाल दे या खरपतवार के रासायनिक नियंत्रण के लिए उनके उगने से पूर्व पेढ़ी की कलिकाओं के निकलते समय रतुनिंग (Ratunng) प्रति हेक्टेयर स्ट्राजीन 20% किलोग्राम का छिड़काव करना चाहिए।
  5. पेड़ी की फसल में 12 से 15 दिन के अंतराल पर सिंचाई करते रहे इस समय गन्ने की कटाई करने पर पीढ़ी की फसल में इंटर क्रॉपिंग के रूप में मूंग उर्द लोबिया इत्यादि होता है।
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    सूरजमुखी: 

  1. सूरजमुखी की बोआई 15 मार्च तक पूरा कर लें।
  2. सूरजमुखी की फसल में बोआई के 15-20 दिन बाद फालतू पौधों को निकाल कर पौधे से पौधे की दूरी 20 सेंमी कर लें और तब सिंचाई करें।
  3. पहली सिंचाई के बाद 10 से 15 दिन के अंतर पर सिंचाई करनी चाहिए। 
  4. सूरजमुखी में 25 से 30 दिन की अवस्था पर 40 किलोग्राम नाइट्रोजन का टॉप ड्रेसिंग कर दें यदि आलू की खुदाई के बाद बुवाई की गई हो तो 30 किलो ग्राम नाइट्रोजन की टॉप ड्रेसिंग करनी चाहिए क्योंकि आलू में आलू के खेत में पर्याप्त मात्रा में नाइट्रोजन होता है। 

उर्द/मूँग:

  1. बसन्त ऋतु की मूँग उर्द की बोआई के लिए यह माह अच्छा है। इन फसलों की बोआई गन्ना, आलू तथा राई की कटाई के बाद की जा सकती है।
  2. उर्दू व मूंग के लिए 25 से 30 किलोग्राम प्रति हेक्टेयर बीज की आवश्यकता होती है। 
  3. उड़द की बुवाई 25 सेंटीमीटर दूर कतारों में तथा मूंग की बुवाई 30 सेंटीमीटर दूर कतारों में करें। 
  4. उर्दू और मूंग की फसल में बुवाई के समय 100 किलोग्राम प्रति हेक्टेयर डीएपी उर्वरक का प्रयोग करना चाहिए। 

चारे की फसल:

  1. बरसीम में इस माह 10 दिन के अंतराल पर सिंचाई करें प्रत्येक कटाई के बाद सिंचाई अवश्य करनी चाहिए।
  2. जई की फसल में दूसरी तथा अंतिम कटाई तब करें जब 50% फसल में फूल आ जाए। 
  3. गर्मी में चारा उपलब्ध कराने के लिए इस समय मक्का, लोबिया तथा चरी की कुछ खास किस्मों की बोआई के लिए अच्छा समय है।
  4. हरे चारे के लिए मक्का की गंगा-2, विजय और अफ्रीकन टाल तथा लोबिया की रशियन जॉइंट, यूपीसी 5286 यूपीसी, 8707 और यूपीसी 9202 अच्छी प्रजातियां होती है। 
  5. चेरी की वह प्रजाति है जिससे कई बार कटाई प्राप्त होती है जैसे MP चरी,  पूसा चरी 23 व पायनियर की संकर किस्म की प्रजाति उपयुक्त होती है। 
  6. मक्का के लिए 40 किलो ग्राम, लोबिया के लिए 35 किलोग्राम तथा चरी के लिए 20 से 25 किलोग्राम बीज प्रति हेक्टेयर आवश्यकता होती है। 

सब्जियों की खेती:

  1. बैंगन तथा टमाटर में फल छेदक कीट के नियंत्रण के लिए क्यूनालफास 25 प्रतिशत 1.0 ली. प्रति हेक्टेयर 500-600 लीटर पानी में घोल कर छिड़काव करें।
  2. वर्षाकालीन बैंगन के लिए नर्सरी में बीज की बोआई कर दें।
  3. ग्रीष्मकालीन सब्जियोंलोबिया, भिण्डी, चौलाई, लौकी, खीरा, खरबूजा, तरबूज, चिकनी तोरी, करेला, आरी तोरी, कुम्हड़ा, टिण्डा, ककड़ी चप्पन कद्दू की बोआई यदि हुई हो तो पूरी कर लें।
  4. ग्रीष्मकालीन सब्जियों, जिनकी बोआई फरवरी माह में कर दी गई थी, की 7 दिन के अन्तर पर सिंचाई करते रहें तथा आवश्यकतानुसार निराईगुड़ाई करें। पत्ती खाने वाले कीटों से बचाने के लिए डाईक्लोरोवास एक मिलीलीटर प्रति लीटर पानी में मिलाकर छिड़काव करें।
  5. पिछले माह भिंडी की बुवाई में नहीं की गई हो तो माह के प्रथम सप्ताह में बुवाई की जा सकती है। 
  6. लहसुन की फसल में निराईगुड़ाई सिंचाई करें।

बागवानी:

  1. नींबू में यदि फरवरी में उर्वरक न दिया गया हो तो उसे दे सकते हैं।
  2. अमरूद के नए पौधों का रोपाई की जा सकती है।
  3. अमरूद, आंवला, आम, कटहल, पपीता व लीची के नवरोपित पौधे की सिंचाई करें।
  4. अंगूर के मुख्य शाखा से अनावश्यक पतियों को तोड़ दें तथा लता को जाल पर व्यवस्थित कर दें। 
  5. अंगूर के फलों का आकर व वजन बढ़ाने के लिए 50% अधिक फूल खिलने के अवस्था पर 30 से 40 मिलीग्राम जिब्रेलिक एसिड प्रति लीटर पानी में मिलाकर छिड़काव करे। 
  6. आम में भुनगा कीट से बचाव हेतु मोनोक्रोटोफास 1.5 मिलीलीटर प्रति लीटर पानी में घुलनशील गन्धक 80 प्रतिशत 2.0 ग्राम अथवा डाइनोकैप 48 प्रतिशत .सी. 1.0 मि.ली. की दर से पानी में घोलकर छिड़काव करें। काला सड़न या आन्तरिक सड़न के नियंत्रण के लिए बोरैक्स 10 ग्राम 1 लीटर पानी में मिलाकर छिड़काव करें। उपरोक्त तीनों रोगों के विरूद्ध उपयुक्त रसायनों का एक साथ मिलाकर स्प्रे किया जा सकता है।
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पुष्प सुगन्ध पौधे:

  1. यदि आप गलैडियोलस से कन्द लेना चाहें तो पौधे को भूमि से 15-20 सेंमी ऊपर से काटकर छोड़ दें और सिंचाई करें। पत्तियाँ जब पीली पड़ने लगें तो सिंचाई बन्द कर दें।
  2. गर्मी वाले मौसमी फूलों जैसे पोर्चुलाका, जीनिया, सनफ्लावर, कोचिया, नारंगी कासमास, ग्रोम्फ्रीना, सेलोसिया बालसम के बीजों को एक मीटर चौड़ी तथा आवश्यकतानुसार लम्बाई की क्यारियाँ बनाकर बीज की बोआई कर दें।
  3. बीज को नर्सरी में बुवाई के बाद सुखी घास या पुवाल से ढक कर हल्की सिंचाई कर दें। 
  4. मेंथा में 10-12 दिन के अन्तराल पर सिंचाई करें तथा प्रति हेक्टेयर 40-50 किग्रा नाइट्रोजन की पहली टाप ड्रेसिंग कर दें।

मुर्गीपालन:

  1. कम अण्डे देने वाली मुर्गियों की छटनी (कलिंग) करें।
  2. मुर्गियों के पेट में पड़े कीड़ों की रोकथाम (डिवर्मिंग) के लिए दवा दें।
  3. परजीवियों जैसे जुएं की रोकथाम के लिए मैलाथियान कीटनाशक तथा राख का आधाआधा भाग मिलाकर मुर्गियों के पंख पर रगड़े।

पशुपालन/दुग्ध विकास:

  1. पशुशाला की सफाई पुताई करायें।
  2. यदि गाय का कृत्रिम गर्भाधान कराया गया हो तो 2 माह के अंदर परीक्षा करा ले।
  3. गर्भित गाय की भोजन में दाना की मात्रा बढ़ा देनी चाहिए। 
  4. बरसीम को चारा मिला कर पशु खिलाएं।
  5. पशुओं के पेट में कीड़ों की रोकथाम के लिए कृमिनाशक दवा देने का सर्वोत्तम समय है।

पशुओं के आहार तैयार करने से पहले ध्यान रखने योग्य कुछ मुख्य बातें:

  1. आहार में सभी पोषक तत्व उचित मात्रा में होने चाहिए।
  2. आहार होने के साथ-साथ पशु को संतुष्टि प्रदान करने वाला भी होना चाहिए।
  3. थोड़ा भारीपन (स्थूल) भी होना चाहिए।
  4. आहार संतुलित हो लेकिन विषैला नहीं होना चाहिए।
  5. सस्ता, ताजा तथा पर्याप्त मात्रा में प्रोटीन युक्त होना चाहिए।
  6. उचित समय अंतराल पर दिन में केवल दो बार आहार देना चाहिए ताकि पाचन क्रिया ठीक रहे।
  7. हरे चारे को साल भर देने का प्रयास करना चाहिए।
  8. पुआल को भिगोंकर ही देना चाहिए, इसके अलावा दाना को हमेशा पानी में फुलाकर ही खिलाना चाहिए जिससे उसकी पौष्टिकता बढ़ जाती है।
  9. बछड़े,गाय, गर्भवती गाय,भार वहन करने वाले बैल, सांड,सुखी गर्भवती गाय तथा बढ़ने वाले पशुओं को दिए जाने वाले आहार अलग-अलग प्रकार के होते हैं ।

पशु को आहार देने के कुछ मूल नियम:

  1. पशु का आहार दिन में दो बार 8-10 घंटे के अंतराल पर चारा पानी देना चाहिए
  2. इससे पाचन क्रिया ठीक रहती है एवं बीच में जुगाली करने का समय भी मिल जाता है
  3. पशु का आहार सस्ता, साफ़, स्वादिष्ट एवं पाचक हो | चारे में 1/3 भाग हरा चारा एवं 2/3 भाग सूखा चारा होना चाहिए
  4. पशु को जो आहार दिया जाए उसमें विभिन्न प्रकार के चारे-दाने मिले हों
  5. चारे में सूखा एवं सख्त डंठल नहीं हो बल्कि ये भली भांति काटा हुआ एवं मुलायम होना चाहिए इसी प्रकार जौ,चना, मटर, मक्का इत्यादि दली हुई हो तथा इसे पक्का कर या भिंगो कर एवं फुला कर देना चाहिए
  6. दाने को अचानक नहीं बदलना चाहिए बल्कि इसे धीरे-धीरे एवं थोड़ा-थोड़ा कर बदलना चाहिए
  7. पशु को उसकी आवश्यकतानुसार ही आहार देना चाहिए | कम या ज्यादा नहीं
  8. नांद एकदम साफ होनी चाहिए, नया चारा डालने से पूर्व पहले का जूठन साफ़ कर लेना चाहिए
  9. गायों को 2-2.5 किलोग्राम शुष्क पदार्थ एवं भैंसों को 3.0 किलोग्राम प्रति 100 किलोग्राम वजन भार के हिसाब से देना चाहिए

 

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