नवंबर माह के कृषि कार्य | Agriculture work for the month of November

नवंबर में बोई जाने वाली सब्जियां | नवंबर महीने में कौन सी खेती करें | नवंबर में बोई जाने वाली फसल | नवंबर में बोई जाने वाली फसलें | नवंबर माह के कृषि एवं बागवानी कार्य | November mah ke krishi karya | Agriculture work for the month of November |नवंबर माह के कृषि कार्य

नवंबर माह के कृषि कार्य | Agriculture work for the month of November:

इस माह में कृषि मुख्य तथ्या:

मिट्टी परीक्षण (Soil Testing):

  • नवंबर माह में खेत खाली होने पर मिट्टी के नमूने ले लें।
  • 3 वर्षों में एक बार अपने खेत का मिट्टी परीक्षण अवश्य करवाएं ताकि, मिट्टी में उपलब्ध पोषक तत्वों (नत्रजन, फास्फोरस, पोटाशियम, सल्फर, जिक, लोहा, तांबा, मैंगनीज व अन्य) की मात्रा तथा फसलों में कौन सी खाद कब व कितनी मात्रा में डालनी है, का पता चल सके।

अन्न भण्डरण ( खाद्य सुरक्षा):

  • खरीफ की फसलों के दानों को कीड़े बहुत नुकसान पहुचातें हैं, इनसे बचाव के लिए अन्न को धूप में अच्छी तरह सुखा लें तथा साफ कर लें।
  • गोदान में सुराख व दरारें अच्छी तरह बंद कर लें। नई बोरियां प्रयोग में लाएं।

फसलोत्पादन:

धान:

  1. धान की शेष पकी फसल की कटाई कर लें।
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गेहूँ:

  1. धान की कटाई के बाद गेहूँ के लिए खेत की तैयारी तत्काल कर लें। देख लें कि मिट्टी भुरभुरी हो जाये और ढेले न रहने पायें।
  2. गेहूँ में बोआई का सबसे अच्छा समय 15 से 30 नवम्बर तक का है। इस बीच गेहूँ की बोआई हर हालत में पूरी कर लें।
  3. प्रमाणित और शोधित बीज ही बोयें।
  4. यदि बीज शोधित न हो तो प्रति किलोग्राम बीज को 2.5 ग्राम थीरम से शोधित कर लें।
  5. PWD-343, PWD-502, PWD-39, UP-2382, HUW-510 गेहूँ की उपयुक्त किस्में हैं।
  6. खाद और बीज एक साथ डालने के लिए Ferti-Seed-Drill का प्रयोग करना अच्छा होगा।

जौ:

  1. पूर्वी उत्तर प्रदेश में सिंचित क्षेत्र होने की दशा में जौ की बोआई 15 नवम्बर तक और पश्चिमी उत्तर प्रदेश तथा बुन्देलखण्ड के इलाके में 15 से 30 नवम्बर के मध्य पूरी कर लें।
  2. यदि बीज प्रमाणित न हो तो बोआई से पूर्व कैप्टान या थीरम से उपचारित करें।

राई:

  1. बोआई के 15-20 दिन के बाद घने पौधों की छँटनी करके पौधों की आपसी दूरी 15 सेमी कर लें।
  2. बोआई के 5 सप्ताह के बाद पहली सिंचाई और फिर ओट आने पर प्रति हेक्टेयर 75 किग्रा नाइट्रोजन का छिड़काव करें।

चना:

  1. बोआई के 30-35 दिन के बाद निराई-गुड़ाई कर लें।

मटर:

  1. मटर में बोआई के 20 दिन के निराई कर लें।
  2. बोआई के 40-45 दिन बाद पहली सिंचाई करें, फिर 6-7 दिन बाद ओट आने पर हल्की गुड़ाई भी कर दें।

मसूर:

  1. बोआई के लिए 15 नवम्बर तक का समय अच्छा है।
  2. शेखर-2, शेखर-3, पंत मसूर-4, पंत मसूर-5 या नरेन्द्र मसूर प्रजातियाँ उपयुक्त हैं।

शीतकालीन मक्का:

  1. सिंचाई की सुनिश्चित व्यवस्था होने पर रबी मक्का की बोआई माह के मध्य तक पूरी कर लें।
  2. बोआई के लगभग 25-30 दिन बाद पहली सिंचाई कर दें।
  3. पौधों के लगभग घुटने तक की ऊँचार्इ के होने या बोआई के लगभग 30-35 दिन बाद प्रति हेक्टेयर 87 किग्रा यूरिया की टाप ड्रेसिंग कर दें।

शरदकालीन गन्ना:

  1. बोआई के 3-4 सप्ताह बाद निराई-गुड़ाई कर लें।

बरसीम:

  1. बोआई के बाद 2-3 सिंचार्इ एक-एक हफ्ते पर और फिर आवश्यकतानुसार हर 20-25 दिन पर करते रहें।
  2. बोआई के 45 दिनों के बाद पहली कटार्इ करें।

जई:

  1. नवम्बर का पूरा महीना चारे हेतु जई बोने के लिए अच्छा है।
  2. जई की केन्ट यू०पी०ओ०-94, यू०पी०ओ०-212, फ्लेमिंग गोल्ड किस्में अच्छी हैं।
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सब्जियों की खेती:

  1. आलू की कुफरी बहार, कुफरी बादशाह, कुफरी अशोका, कुफरी सतलज, कुफरी आनन्द तथा लाल छिलके वाली कुफरी सिन्दूरी और कुफरी लालिमा मुख्य प्रजातियाँ हैं।
  2. आलू की चिप्स के लिए उपयुक्त चिप्सोना-1 एवं चिप्सोना-2 मुख्य प्रजातियाँ हैं।
  3. आलू की बोआई यदि अक्टूबर में न हो पायी हो तो अब जल्दी पूरी कर लें।
  4. टमाटर की बसन्त/ग्रीष्म ऋतु की फसल के लिए पौधशाला में बीज की बोआई कर दें।
  5. सब्जी मटर की बुवाई 15 नवंबर तक कर सकते हैं।
  6. मटर की प्रजातियां अर्किल मटर-1, आजाद मटर-3 मुख्य प्रजातियां है।
  7. सब्जी मटर के लिए प्रति हेक्टेयर 80 से 100 किलोग्राम बीज की आवश्यकता होती है।
  8. लहसुन की बुवाई यदि ना हुई हो तो इस माह में पूरी कर ले। 
  9. प्याज की रबी फसल के लिए पौधशाला में बीज की बोआई करें।
  10. पौधशाला में बोआई लिए प्रति हेक्टेयर 8 से 10 किलोग्राम बीज आ सकता होती है।

बागवानी: 

  1. आम एवं अन्य फलों के बाग में जुताई करके खरपतवार नष्ट कर दें।
  2. आम में मिलीबग कीट के नियंत्रण हेतु तने और थाले के आसपास मैलाथियान 5 प्रतिशत एवं फेनेवैलरेट 0.4 प्रतिशत घूल 250 ग्राम प्रति पेड़ के हिसाब से तने के चारों तरफ बुरकाव तथा तने के चारों ओर एल्काथीन की पट्टी लगायें।
  3. आम के पेड़ों में थालों की सफाई कर दें तथा सुखी एवं रोग ग्रस्त टाहानियों को काट दें। 
  4. आंवला, नींबू, पपीता में सिंचाई करें। 
  5. आंवले की गुड़ाई एवं विपरण की व्यवस्था करें। 
  6. केले में पर्ण धब्बा एवं सड़न रोग के लिए 1 ग्राम कार्बेन्डाजिम प्रति लीटर की दर से छिड़काव करें।

पुष्प व सुगन्ध पौधे:

  1. देशी गुलाब की कलम काटकर अगले वर्ष के स्टाक हेतु क्यारियों में लगा दें।
  2. ग्लेडियोलस में स्थानीय मौसम के अनुसार सप्ताह में एक या दो बार सिंचाई करें।

मुर्गीपालन:

  • लेयर फीड और सीप का चूरा दें।
  • 14 से 16 घंटे प्रकाश उपलब्ध कराएं।
  • क्रीम नाशक दवा पिलाए।
  • बिछड़ने को नियमित रूप से पलटते रहे।

पशुपालन/दुग्ध विकास:

  1. संतति को खीस (कोलेस्ट्रम) अवश्य खिलायें।
  2. पशुओं को स्वच्छ जल ही पिलाएं।
  3. क्रीमनाशक दवा का सेवन कराएं।
  4. पशुओं को संतुलित आहार देते रहें।
  5. थनैला रोग होने पर उपचार कराएं।
  6. चारे के साथ नमक मिश्रण देते रहें।
  7. दुहने से पहले थन को साफ पानी से धोयें तथा बर्तन व वातावरण भी स्वच्छ रखें।
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