पौधों के लिए आवश्यक पोषक तत्व | Plant Nutrients |
Classification of Plant nutrient | Essential Nutrients for Plants | Essential of Plant Nutrient | 17 पोषक तत्व | पोषक तत्व | पौधों के लिए आवश्यक पोषक तत्व | 17 Essential Plant Nutrients | Plant Nutrients | Plant Nutrients and their Functions | पौध पोषक तत्व क्या है | What is Plant Nutrients |
Plant Nutrients:
प्रारम्भ में जब रासायनिक उर्वरक उपलब्ध नहीं थे खेती में जैविक खादों का प्रयोग मुख्य रूप से किया जाता था जिससे कृषि उत्पादन अपेक्षित स्तर तक नहीं पहुंच पाता था परन्तु जब हरित क्रांति का उद्भव हुआ, उर्वरकों का प्रयोग धीरे-धीरे बढ़ता गया जिससे उत्पादन में आशातीत वृद्धि हुई। प्रारम्भ में प्रमुख पोषक तत्वों में केवल नत्रजनिक उर्वरकों का प्रयोग हुआ लेकिन धीरे-धीरे नाइट्रोजन (N), फास्फोरस (P) एवं पोटाश (K) उर्वरकों के महत्व को समझते हुए इनका प्रयोग भी होने लगा परन्तु अन्य आवश्यक पोषक तत्वों यथा मैग्नीशियम, सल्फर, जिंक, आयरन, कापर मैंग्नीज, मालिब्डेनम तथा बोरान एवं क्लोरीन की मिट्टी में कमी होती रही।
मृदा उर्वरता का संतुलन इस प्रकार किया जाय कि फसल की मांग एवं आवश्यकता के अनुसार पौधों को आवश्यक पोषक तत्व उपलब्ध होते रहें, जिससे अधिक से अधिक उपज मिल सके और मृदा स्वस्थ्य सुरक्षित बना रहे। इसके लिए आवश्यकतानुसार अकार्बनिक एवं कार्बनिक स्रोतो से फसल को सभी तत्वों का निश्चित अनुपात में आवश्यक है। क्योंकि प्रत्येक तत्व का पौधों के अन्दर अलग-अलग कार्य एवं महत्व है जो विभिन्न अवस्थाओं में पूर्ण होता है। कोई एक तत्व दूसरे तत्व का पूरक नहीं है। यह संतुलन बिगड़ने पर उत्पादन सीधे प्रभावित होता है। List of Government Yojana
पौध पोषक तत्व क्या है? (What is Plant Nutrients):
पौधों को बड़ी मात्रा में कुछ पौधों में पोषक तत्वों की आवश्यकता होती है जिन्हें Micronutrients कहा जाता है जबकि कुछ को कम मात्रा में सूक्ष्म पोषक तत्व के रूप में जाना जाता है। कार्बन डाइऑक्साइड और ऑक्सीजन जैसी गैसें हवा के माध्यम से प्रदान की जाती हैं जबकि हाइड्रोजन पानी द्वारा प्रदान की जाती है। मिट्टी तेरह अतिरिक्त सूक्ष्म पोषक तत्वों मुख्य पोषक तत्व (Major or Macro Nutrients) नाइट्रोजन (N), फास्फोरस (P) एवं पोटाश (K), गौण पोषक तत्व (Secondary Nutrients) कैल्सियम (Ca), मैग्नीशियम (Mg) एवं गन्धक (S), सूक्ष्म पोषक तत्व (Micro or Rare or Trace or Minor Nutrients) लोहा (Fe), जिंक (Zn), कापर (Cu), मैंगनीज (Mn), मालिब्डेनम (Mo), बोरॉन (B), क्लोरीन (Cl) एवं निकिल (Ni) की आपूर्ति करती है। इन पोषक तत्वों की कमी पौधों की वृद्धि को रोकती है, उनके जीवन चक्र को प्रभावित करती है, प्रक्रियाओं को प्रभावित करती है और रोगों के प्रति उनकी प्रतिरोधक क्षमता को कम करती है। खाद और उर्वरक के रूप में पोषक तत्व प्रदान करके मिट्टी की उर्वरता को बढ़ाया जा सकता है।
पौधे जड़ों द्वारा भूमि से पानी एवं पोषक तत्व, वायु से कार्बन डाई आक्साइड तथा सूर्य से प्रकाश ऊर्जा लेकर अपने विभिन्न भागों का निर्माण करते है। पोषक तत्वों को पौधों को वृद्धि एवं विकास के लिए 17 पोषक तत्वों की आवश्यकता होती है जिसमें कुछ ऐसे तत्व हैं जो पानी तथा हवा से प्राप्त होते हैं। पौधे के संपूर्ण विकास के लिए यह सभी पोषक तत्वों की आवश्यकता होती है।
पौधों के लिए आवश्यक पोषक तत्वों का वर्गीकरण (Classification of Plant nutrient):
- हवा और पानी से प्राप्त पोषक तत्व- कार्बन (C), हाइड्रोजन (H) ऑक्सीजन (O).
- मुख्य पोषक तत्व (Major or Macro Nutrients)-नाइट्रोजन (N), फास्फोरस (P) एवं पोटाश (K).
- गौण पोषक तत्व (Secondary Nutrients)- कैल्सियम (Ca), मैग्नीशियम (Mg) एवं गन्धक (S).
- सूक्ष्म पोषक तत्व (Micro or Rare or Trace or Minor Nutrients)- लोहा (Fe), जिंक (Zn), कापर (Cu), मैंगनीज (Mn), मालिब्डेनम (Mo), बोरॉन (B), क्लोरीन (Cl) एवं निकिल (Ni).
Related links are given below: | |
मृदा में पोषक तत्व की प्रार्याप्ता पर pH का प्रभाव (Effect of pH on Nutrient availability in Soil):
नाइट्रोजन (N):
- 6 से 8 पीएच पर नाइट्रोजन की घुलनशीलता और पर्याप्त पौधों के लिए सबसे अधिक होती है।
- नाइट्रोजन का अधिक पीएच होने पर पौधे में नाइट्रोजन को अमोनिया के रूप में और कम पीएच होने पर नाइट्रेट के रूप में पौधा अवशोषित कर लेते लेता है।
- कार्बनिक पदार्थों का मिनिरलाइजेशन 6 से 8 पीएच पर अधिक होता है।
फास्फोरस (P):
- 6.5 से 7.5 पीएच पर फास्फोरस की घुलनशीलता और पर्याप्त पौधों के लिए सबसे अधिक होती है।
- पीएच 6.5 से कम होने पर फास्फोरस की घुलनशील ना होकर पौधे के लिए अपर्याप्त हो जाती हैं।
पोटैशियम (K):
- 6.5 से 8 पीएच पर पोटैशियम की घुलनशीलता और पर्याप्त पौधों के लिए सबसे अधिक होती है।
- अम्लीय मृदा में पोटेशियम की कमी रहती है क्योंकि अम्लीय मृदा में लिचिंग अधिक मात्रा में होता है।
- लीचिंग होने के कारण से पोटेशियम पौधे में अपर्याप्त हो जाते हैं।
- 8.5 से अधिक पीएच वाली मृदा में पर्याप्त मात्रा में उपलब्ध होते हैं।
पौधों में आवश्यक पोषक तत्व एवं उनके कार्य:
- पौधों के सामान्य विकास एवं वृद्धि हेतु कुल 17 पोषक तत्वों की आवश्यकता होती है। इनमें से किसी एक पोषक तत्व की कमी होने पर पैदावार पर प्रतिकूल प्रभाव पड़ता है और भरपूर फसल नहीं मिलती ।
- कार्बन, हाइड्रोजन व आक्सीजन को पौधे हवा एवं जल से प्राप्त करते है।
- नाइट्रोजन , फस्फोरस एवं पोटैशियम को पौधे मिट्टी से प्राप्त करते है। इनकी पौधों को काफी मात्रा में जरूरत रहती है। इन्हे प्रमुख पोषक तत्व कहते है।
- कैल्शियम, मैग्नीशियम एवं गन्धक को पौधे कम मात्रा में ग्रहण करते है। इन्हे गौड अथवा द्वितीयक पोषक तत्व कहते है।
- लोहा, जस्ता, मैगनीज, तांबा, बोरॉन, मोलिब्डेनम और क्लोरीन तत्वों की पौधों को काफी मात्रा में आवश्यकता पड़ती है। इन्हे सूक्ष्म पोषक तत्व कहते है।
पौधों में पोषक तत्वों के कार्य (Functions of Nutrients in Plants):
नाइट्रोजन (N) तत्वों के कार्य:
- नाइट्रोजन पौधों का आधारभूत पोषक तत्व है।
- यह पोषक तत्व क्लोरोफिल, अमीनो एसिड, प्रोटीन, अल्कलॉइड्स और प्रोटोप्लास्ट का निर्माण करता है।
- नाइट्रोजन से पौधे की पत्तियों और तने के अधिक विकास होती है।
- सभी जीवित ऊतकों यानि जड़, तना, पत्ति की वृद्दि और विकास में सहायक है।
- पत्ती वाली सब्जियों और चारे की गुणवत्ता में सुधार करता है।
नाइट्रोजन की कमी के लक्षण:
- नाइट्रोजन की कमी से पोषक तत्व की कमी से पौधे के बढ़वार रुक जाती है और पौधे का रंग पीला पढ़ने लगता है यह पीलापन अक्सर निचली या पुरानी पतियों पर दिखाई देता है, जबकि ऊपर की नई पत्तियां हरी रहती है। इसकी अधिक कमी होने पर पत्तियां भूरी होकर सूख जाती हैं तथा यह नीचे गिरने लगती है।
- पौधों की बढवार रूक जाती है तथा तना छोटा एवं पतला हो जाता है।
- पत्तियां नोक की तरफ से पीली पड़ने लगती है। यह प्रभाव पहले पुरानी पत्तियों पर पड़ता है, नई पत्तियाँ बाद में पीली पड़ती है।
- पौधों में टिलरिंग कम होती है।
- फूल कम या बिल्कुल नही लगते है।
- फूल और फल गिरना प्रारम्भ कर देते है।
- दाने कम बनते है।
- आलू का विकास घट जाता है।
फास्फोरस (P) तत्वों के कार्य:
- फास्फोरस पोषक तत्व से पौधों की बढ़वार, कोशिकाओं के विभाजन, जड़ों के फैलाव, कलियां, फूल बनाने, बीज एवं फलों के विकास और समय से पौधे पकने के लिए भी जिम्मेदार होते हैं।
- इस पोषक तत्व से कई पदार्थों जैसे वसा, तेल और न्यूक्लिक अम्लों, प्रोटीन, फास्फोलिपिड, अमीनो एसिड का भी मात्रा का अवयव है।
- पौधों में फास्फोरस युक्त पदार्थ पौधों में ऊर्जा के स्रोत का काम करते हैं।
- दलहनी फसलों की जड़ों में पाई जाने वाली ग्रंथियों को विकास फास्फोरस की उपस्थिति में अधिक विकास होता है।
- पौधों के वर्धनशील अग्रभाग, बीज और फलों के विकास हेतु आवश्यक है। पुष्प विकास में सहायक है।
- कोशिका विभाजन के लिए आवश्यक है। जड़ों के विकास में सहायक होता है।
फास्फोरस की कमी के लक्षण:
- फास्फोरस की कमी से पौधों की बढ़वार रुक रुक जाती है।
- फास्फोरस की कमी से जड़ों के फैलाव में कमी आती है।
- फास्फोरस की कमी से फसल देर से पकती है।
- फास्फोरस की कमी के लक्षण पुरानी पत्तियों पर प्रारंभ होने से तथा पौधे के तनों या पत्तियों पर लाल या बैगनी रंग आ जाता है।
- पौधों की वृद्धि कम हो जाती है।
- जडों का विकास रूक जाता है।
- पुरानी पत्तियाँ सिरों की तरफ से सूखना शुरू करती है तथा उनका रंग तांबे जैसा या बैंगनी हरा हो जाता है।
- टिलरिंग घट जाती है।
- फल कम लगते है, दानो की संख्या भी घट जाती है।
- अधिक कमी होने पर तना गहरा पीला पड़ जाता है।
पोटेशियम (K) तत्वों के कार्य:
- सभी प्रकार के पोषक तत्व का अवशोषण तथा पौधों में उनके संचालन के लिए आवश्यक होती है।
- पोटेशियम पोषक तत्व Transpiration तथा पतियों द्वारा जल की हानि को रोकता करता है।
- कोशिकाओं की झिल्ली से कोशिका द्रव, जल की मांग में कमी, सूखा, पाला और पौधों में रोग प्रतिरोधक क्षमता में वृद्धि होती है।
- एंजाइमों की क्रियाशीलता बढाता है।
- ठण्डे और बादलयुक्त मौसम में पौधों द्वारा प्रकाश के उपयोग में वृद्धि करता है, जिससे पौधों में ठण्डक और अन्य प्रतिकूल परिस्थितियों को सहन करने की क्षमता बढ़ जाती है।
- कार्बोहाइड्रेट के स्थानांतरण, प्रोटीन संश्लेषण और इनकी स्थिरता बनाये रखने में मदद करता है।
- पौधों की रोग प्रतिरोधी क्षमता में वृद्धि होती है।
- इसके उपयोग से दाने आकार में बड़े हो जाते है और फलों और सब्जियों की गुणवत्ता में वृद्धि होती है।
पोटेशियम की कमी के लक्षण:
- पोटेशियम की कमी के लक्षण पौधों में सर्वप्रथम पुरानी पत्तियों पर दिखाई पड़ते हैं यह पुरानी पत्तियों के किनारे पीले पड़ जाते हैं और पत्तियों बाद में भूरी झुलसी हुई हो जाती है।
- पोटेशियम की कमी से पौधों का विकास कम हो जाता है।
- पोटेशियम की कमी से तने कमजोर जाती हैं।
- पोटेशियम की कमी से रोगों का रोग प्रतिरोधक क्षमता कम हो जाती है।
- पोटेशियम की कमी से पत्तियों या पौधों में कीटो तथा रोगों का आक्रमण अधिक हो जाता है।
- पोटेशियम की कमी से दानों का सिकुड़ने लगते हैं।
- पौधों में ऊपर की कलियों की वृद्धि रूक जाती है।
- पत्तियाँ छोटी पतली व सिरों की तरफ सूखकर भूरी पड़ जाती है और मुड़ जाती है।
- पुरानी पत्तियाँ किनारों और सिरों पर झुलसी हुई दिखाई पड़ती है तथा किनारे से सूखना प्रारम्भ कर देती है।
- तने कमजोर हो जाते है।
- फल तथा बीज पूर्ण रूप से विकसित नहीं होते तथा इनका आकार छोटा, सिकुड़ा हुआ एवं रंग हल्का हो जाता है।
- पौधों पर रोग लगने की सम्भावना अधिक हो जाती है।
कैल्शियम (Ca) तत्वों के कार्य:
- कैल्शियम से जड़ों के विकास में वृद्धि होती है।
- कैल्शियम से कोशिकाओं का विभाजन पौधों की बढ़वार जड़ों के विकास और प्रोटीन निर्माण में सहयोग करती है।
- कैल्शियम भूमि सुधार में मदद करता है।
- कोशिका झिल्ली की स्थिरता बनाये रखने में सहायक होता है।
- एंजाइमों की क्रियाशीलता में वृद्धि करता है।
- पौधों में जैविक अम्लों को उदासीन बनाकर उनके विषाक्त प्रभाव को समाप्त करता है।
- कार्बोहाइट्रेड के स्थानांतरण में मदद करता है।
कैल्शियम की कमी से लक्षण:
- कैल्शियम की कमी से सर्वप्रथम पौधे के टर्मिनल कालिका भाग पर नजर आता है।
- कैल्शियम की कमी से पत्तियों का आकार छोटा रह जाता है और पत्तियां बाद में मुड़ जाती है।
- कैल्शियम की कमी से पत्तियां झुर्रियां पड़ जाती है और उनका रंग गहरा हरा हो जाता है।
- नये पौधों की नयी पत्तियां सबसे पहले प्रभावित होती है। ये प्राय: कुरूप, छोटी और असामान्यता गहरे हरे रंग की हो जाती है। पत्तियों का अग्रभाग हुक के आकार का हो जाता है, जिसे देखकर इस तत्व की कमी बड़ी आसानी से पहचानी जा सकती है।
- जड़ो का विकास बुरी तरह प्रभावित होता है और जड़े सड़ने लगती है।
- अधिक कमी की दशा में पौधों की शीर्ष कलियां (वर्धनशील अग्रभाग) सूख जाती है।
- कलियां और पुष्प अपरिपक्व अवस्था में गिर जाती है।
- तने की संरचना कमजोर हो जाती है।
मैग्नीशियम (Mg) तत्वों के कार्य:
- क्लोरोफिल का प्रमुख तत्व है, जिसके बिना प्रकाश संश्लेषण (भोजन निर्माण) संभव नहीं है।
- कार्बोहाइट्रेड-उपापचय, न्यूक्लिक अम्लों के संश्लेषण आदि में भाग लेने वाले अनेक एंजाइमों की क्रियाशीलता में वृद्धि करता है।
- फास्फोरस के अवशोषण और स्थानांतरण में वृद्दि करता है।
मैग्नीशियम की कमी से लक्षण:
- पुरानी पत्तियां किनारों से और शिराओं एवं मध्य भाग से पीली पड़ने लगती है तथा अधिक कमी की स्थिति से प्रभावित पत्तियां सूख जाती है और गिरने लगती है।
- पत्तियां आमतौर पर आकार में छोटी और अंतिम अवस्था में कड़ी हो जाती है और किनारों से अन्दर की ओर मुड़ जाती है।
- कुछ सब्जी वाली फसलों में नसों के बीच पीले धब्बे बन जाते है और अंत में संतरे के रंग के लाल और गुलाबी रंग के चमकीले धब्बे बन जाते है।
- टहनियां कमजोर होकर फफूंदी जनित रोग के प्रति सवेदनशील हो जाती है। साधाराणतया अपरिपक्व पत्तियां गिर जाती है।
सल्फर (S) तत्वों के कार्य:
- प्रोटीन संरचना को स्थिर रखने में सहायता करता है।
- तेल संश्लेषण और क्लोरोफिल निर्माण में मदद करता है।
- विटामिन के उपापचय क्रिया में योगदान करता है।
सल्फर की कमी से लक्षण:
- नयी पत्तियां एक साथ पीले हरे रंग की हो जाती है।
- तने की वृद्दि रूक जाती है।
- तना सख्त, लकड़ी जैसा और पतला हो जाता है।
जिंक (Zn) तत्वों के कार्य:
- पौधों द्वारा नाइट्रोजन के उपयोग में सहायक होता है
- न्यूक्लिक अम्ल और प्रोटीन-संश्लेषण में मदद करता है।
- हार्मोनों के जैव संश्लेषण में योगदान करता है।
- अनेक प्रकार के खनिज एंजाइमों का आवश्यक अंग है।
जिंक की कमी से लक्षण:
- जिंक की कमी के लक्षण सर्वप्रथम नई एवं पुरानी पत्तियों पर दिखाई पड़ता है।
- इसकी कमी से पौधे की वृद्धि रुक जाती है।
- इसकी कमी से दाना कम फूटना, पत्तियों पर हल्के पीले धब्बे, अनाज की फसल में पत्तियों पर मध्य शीला के दोनों ओर रंगहीन पट्टी बन जाती है।
- पौधों के ऊपरी भाग से दूसरी या तीसरी पूर्ण परिपक्व पत्तियों से प्रारम्भ होते है।
- मक्का में प्रारम्भ में हल्के पीले रंग की धारियां बन जाती है और बाद में चौड़े सफेद या पीले रंग के धब्बे बन जाते है। शिराओं का रंग लाल गुलाबी हो जाता है। ये लक्षण पत्तियों की मध्य शिरा और किनारों के बीच दृष्टिगोचर होते है, जो कि मुख्यत: पत्ती के आधे भाग में ही सीमित रहते है।
- धान की रोपाई के 15-20 दिन बाद पुरानी पत्तियों पर छोटे-छोटे हल्के पीले रंग के धब्बे दिखाई देते है, जो कि बाद में आकार में बड़े होकर आपस में मिल जाते है। पत्तियां (लोहे पर जंग की तरह) गहरे भूरे रंग की हो जाती है और एक महीने के अन्दर ही सूख जाती है। उपरोक्त सभी फसलों में वृद्दि रूक जाती है। मक्का में रेशे और फूल देर से निकलते है और अन्य फसलों में भी बालें देर से निकलती है।
कॉपर (Cu) तत्वों के कार्य:
- पौधों में विटामिन ‘ए’ के निर्माण में वृद्दि करता है।
- अनेक एंजाइमों का घटक है।
कॉपर की कमी से लक्षण:
- गेहूँ की ऊपरी या सबसे नयी पत्तियां पीली पड़ जाती है और पत्तियों का अग्रभाग मुड़ जाता है। नयी पत्तियां पीली हो जाती है। पत्तियों के किनारे कट-फट जाते हैं तने की गांठों के बीच का भाग छोटा हो जाता है।
- नीबूं के नये वर्धनशील अंग मर जाते है जिन्हें “एक्जैनथीमा” कहते है। छाल और लकड़ी के मध्य गोन्द की थैली सी बन जाती है और फलों से भूरे रंग का स्राव/रस निकलता रहता है।
लोहा (Fe) तत्वों के कार्य:
- फेरस प्रकाश संश्लेषण तथा स्वसन के समय ऊर्जा का स्थानांतरण करने में सहायता प्रदान करती है।
- फेरस एंजाइम को क्रियाशीलता को उत्प्रेरक का कार्य करती है।
- यह दलहनी फसलों की जड़ की ग्रंथियों में पाए जाने वाले हीमोग्लोबिन बनाने में सहायता प्रदान करते हैं।
- पौधों में क्लोरोफिल के संश्लेषण और रख – रखाव के लिए आवश्यक होता है।
- न्यूक्लिक अम्ल के उपापचय में एक आवश्यक भूमिका निभाता है।
- अनेक एंजाइमों का आवश्यक अवयव है।
लोहा (Fe) की कमी से लक्षण:
- इसकी कमी का लक्षण सर्वप्रथम नई पत्तियों पर दिखाई पड़ता है।
- मध्य शिरा के बीच और उसके पास हरा रंग उड़ने लगता है। नयी पत्तियां सबसे पहले प्रभावित होती है। पत्तियों के अग्रभाग और किनारे पर काफी समय तक हरा रंग बना रहता है।
- अधिक कमी की दिशा में, पूरी पत्ती, शिराएं और शिराओं के बीच का भाग पीला पड़ जाता है। कभी कभी हरा रंग बिल्कुल उड़ जाता है।
मैगनीज (Mn) तत्वों के कार्य:
- Light और Dark की अवस्था में पादप कोशिकाओं में होने वाली क्रियाओं को नियंत्रित करता है।
- नाइट्रोजन के उपापचय और क्लोरोफिल के संश्लेषण में भाग लेने वाले एंजाइमों की क्रियाशीलता बढ़ा देता है।
- पौधों में होने वाली अनेक महत्वपूर्ण एंजाइमयुक्त और कोशिकीय प्रतिक्रियाओं के संचालन में सहायक है।
- कार्बोहाइड्रेट के आक्सीकरण के फलस्वरूप कार्बन आक्साइड और जल का निर्माण करता है।
मैगनीज की कमी से लक्षण:
- नयी पत्तियों के शिराओं के बीच का भाग पीला पड़ जाता है, बाद में प्रभावित पत्तियां मर जाती है।
- नयी पत्तियों के आधार के निकट का भाग धूसर रंग का हो जाता है, जो धीरे-धीरे पीला और बाद में पीला- नारंगी रंग का हो जाता है।
- अनाज वाली फसलों में “ग्रे स्प्रेक” खेत वाली मटर में “मार्श स्पाट” और गन्ने में “स्टीक रोग” आदि रोग लग जाते है।
बोरॉन (B) तत्वों के कार्य:
- प्रोटीन-संश्लेषण के लिये आवश्यक है।
- कोशिका –विभाजन को प्रभावित करता है।
- कैल्शियम के अवशोषण और पौधों द्वारा उसके उपयोग को प्रभावित करता है।
- कोशिका झिल्ली की पारगम्यता बढ़ाता है, फलस्वरूप कार्बोहाइड्रेट के स्थानांतरण में मदद मिलती है।
- एंजाइमों की क्रियाशीलता में परिवर्तन लाता है।
बोरॉन की कमी से लक्षण:
- बोरोन की कमी से जड़ों तानों व नई पत्तियों पर सूखने लगती है। और नई पत्तियां गुच्चो का रूप ले लेती है।
- इसकी कमी से पौधे में नाइट्रोजन का सही उपयोग नहीं कर पाता है।
- पौधे की डंठल तने और फल फट जाते हैं।
- बोरान की कमी से बीज और और फल गिरने लगते हैं।
- पौधो के वर्धनशील अग्रभाग सूखने लगते है और मर जाते है।
- पत्तियां मोटे गठन की हो जाती है, जो कभी- कभी मुड़ जाती है और काफी सख्त हो जाती है।
- फूल नहीं बनाया पाते और जड़ों का विकास रूक जाता है।
- जड़ वाली फसलों में “ब्राउन हार्ट” नामक बीमारी हो जाती है, जिसमें जड़ के सबसे मोटे हिस्से में गहरे रंग के धब्बे बन जाते है। कभी-कभी जड़े मध्य से फट भी जाती है।
- सेब जैसे फलों में आंतरिक और बाह्य कार्क के लक्षण दिखायी देते है।
मोलिब्डेनम (Mo) तत्वों के कार्य:
- मॉलीब्लेडिनम दलहनी फसलों की जड़ों में की ग्रंथियों में पाई जाती है यह वायुमंडल से नाइट्रोजन का स्थिरीकरण करने में सहायता करता है।
- कई एंजाइमों का अवयव है।
- नाइट्रोजन उपयोग और नाइट्रोजन फिक्सेशन में मदद करता है।
- नाइट्रोजन फिक्सेशन में राइजोबियम जीवाणु के लिए आवश्यक होता है।
मोलिब्डेनम की कमी से लक्षण:
- इसकी कमी में नीचे की पतियों की शिराओं के मध्य भाग में पीले रंग के धब्बे दिखाई देते है। बाद में पत्तियों के किनारे सूखने लगते है। और पत्तियां अन्दर की ओर मुड़ जाती है।
- फूल गोभी की पत्तियां कट-फट जाती है, जिससे केवल मध्य शिरा और पत्र दल के कुछ छोटे-छोटे टुकड़े ही शेष रह जाते है। इस प्रकार पत्तियां पूंछ के सामान दिखायी देने लगती है, जिसे “हिप टेल” कहते है।
- मोलिब्डेनम की कमी दलहनी फसलों में विशेष रूप से देखी जाती है।
क्लोरीन (Cl) तत्वों के कार्य:
- क्लोरीन प्रकाश संश्लेषण के दौरान ऑक्सीजन पैदा करने में सहायता प्रदान करता है।
- क्लोरीन कोशिका के ऑस्मोटिक प्रेशर को बढ़ाने व उनमें जल को बनाए रखने का काम करता है।
- क्लोरीन पादप हार्मोनों का अवयव है।
- एंजाइमों की क्रियाशीलता में वृद्धि करता है।
- कवकों और जीवाणुओं में पाये जाने वाले अनेक यौगिकों का अवयव है।
क्लोरीन की कमी से लक्षण:
- क्लोरीन की कमी से नई पत्तियां पीली पड़ जाती है और पौधों में Transpiration से पानी की कमी होने पर सूखने लगती है।
- पत्तियों का अग्रभाग मुरझा जाता है, जो अंत में लाल रंग का हो कर सूख जाता है।
- क्लोरीन की कमी से पत्ता गोभी पत्तियों का मुरझाना।
- मक्के में क्लोरीन से कमी से पत्तियां सूख जाती है।